शाबर मंत्र आज के आधुनिक युग में उतने ही विश्वसनीय हैं जितने शास्त्रीय या वैदिक मंत्र। शाबर मंत्रों पर विशेषाधिकार तो पिछड़े वर्ग के या कम पढे-लिखे मांत्रिकों का ही रहा है। आज भी अनेक सपेरे या मदारी तथा जयरामपेशा लोग इन मंत्रों का प्रयोग करते दिखाई देते हैं। मेरे विचार से जितने यह मंत्र पिछड़े वर्ग में विश्वसनीय हैं, उतने ही आधुनिक विचार धारा के लोगों को भी प्रभावित करते हैं। इन मंत्रों की एक विशेषता यह देखने को मिलती है कि इनमें ‘आन’ और ‘शाप’ शब्द का प्रयोग अधिक मिलता है। वस्तुतः इन मंत्रों का साधक देवता पर ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ दोनों का ही प्रयोग करता है। और इसका प्रभाव भी तुरंत तथा चमत्कारी रूप में दिखाई देता है। इन मंत्रों का साधक ‘याचक’ होते हुये भी देवता को वह सब कुछ कह देता है, जो विद्वतापूर्ण देखने पर अनुचित लगता है। और आश्चर्य वाली बात यह है की सम्बंधित देवता को साधक की यह सादगी भरी मांग माननी भी पढती है। उसकी यह ‘आन’ और ‘शाप’ उसी प्रकार काम करते हैं जैसे एक नादान बालक अपनी माता के समक्ष अपना हठ पूरा करवाने के लिये सभी यत्न करता है। ‘आन’ का अर्थ है- सौगन्ध, और ‘शाप’ एक प्रकार की धमकी है। कभी-कभी ‘सौगन्ध’ एक अन्तिम और अमोघ बांण की तरह काम करती है। आज भी न्यायालय में भगवान् की ‘शपथ’ लेकर बयान देने की प्रथा है, और अधिकांश लोग आज भी अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिये सौगन्ध खाया करते हैं। जो भी हो शाबर मंत्रों का प्रभाव अचूक माना जाता है।
प्रयोग विधि- दीपावली (काल रात्रि) अथवा ग्रहण-रात्रि में चौमुखा दीपक जलाए। त्रि-खूँटा चौका लगाकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठें। कनेर के फूल, लड्डू, सिन्दूर, लौंग का जोड़ा और पुष्प माला सामने रखें। अग्रलिखित मंत्र का एक हजार जप कर, दशांश हवन करें। इस प्रकार मंत्र सिद्ध हो जाने पर इच्छित कार्य हेतु भगवान् भैरव से प्रार्थना करे, तो वह अवश्य पूर्ण होगी।
ऊँ काली, कंकाली महा-काली के पुत्र कंकाल-भैरूँ ! हुकुम हाजिर रहे ! मेरा भेजा काल करे, मेरा भेजा रक्षा करे। आन बाँधूँ, वान बाँधूँ, चलते फिरते औसान बाँधूँ, दसो सुर बाँधूँ, नौ नाड़ी बहत्तर कोठा बाँधूँ।
फल में भेजूँ, फूल में जाय। कोठे जो पड़े, थर-थर काँपे, हल-हल हले, गिर-गिर पड़े। उठ-उठ भागे, बक-बक बके।
मेरा भेजा सवा घड़ी, सवा पहर, सवा दिन, सवा मास, सवा बरस कूं बावला न करे, तो माता काली की शय्या पर पग धरे। वाचा चूके, तो उमा सूखे। वाचा छोड़, कुवाचा करे, तो धोबी की नाँद-चमार के कुण्ड में पड़े।
मेरा भेजा बावला न करे, तो रूद्र के नेत्र की ज्वाला कढ़े, शिर की लटा टूटि भूमि में गिरे, माता पारवती के चीर पर चोट पड़े। बिना हुकुम नहीं मारना हो, तो काली के पुत्र कंकाल-भैरौ। फुरो मन्त्र- ईश्वरो वाचा । सत्य नाम, आदेश गुरू का।
प्रयोग विधि- सिद्धि हेतु अग्रलिखित मंत्र का एक हजार जप कर, लोबान और गुग्गुल से दशांश (100) हवन करें। प्रयोग यदि किसी दूसरे के लिए है, तो ‘मेरे’ के स्थान पर उसका नाम कहें।
काल भैरौ, कपिल जट्टा-भैरौ खेले। चार चमट्टा भैरौ मारे। भैरौ खाय, भैरौ मार मसाने जाय। दोहाई नोना चमाइन के । दोहाई शहर जमाल के । दोहाई काल-भैरव के। मेरे पिण्ड-प्राण के खबरदार रहना स्वाहा।
(1) प्रयोग विधि- सर्व प्रथम किसी रविवार को गुग्गुल, धूप, दीपक सहित उपयुक्त मंत्र का पन्द्रह हजार जप कर उसे सिद्ध करें। फिर आवश्यकता अनुसार इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप कर एक लौंग को अभिमन्त्रित करें। इस अभिमन्त्रित लौंग को, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलायें।
ऊँ नमो रूद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रि-लोक-नाथाय! ऊँ हृं फट् स्वाहा।
(2) प्रयोग विधि- इक्कीस हजार जप। आवश्यकता पड़ने पर इक्कीस बार गुड़ को अभिमन्त्रित कर साध्य को खिलायें।
ऊँ नमो काला गोरा भैरूं वीर! पर-नारी सूँ देही सीर। गुड़, परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैरूं आणी। गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। काला भैरूं न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।
(3) प्रयोग विधि- उक्त मंत्र को सात बार पढ़कर पीपल के पत्ते को अभिमन्त्रित करें। फिर मंत्र को उस पत्ते पर लिखकर, जिसका वशीकरण करना हो, उसके घर में फेंक देवे। या उसके घर के पिछवाड़े गाड़ दें। यही क्रिया ‘छितवन’ या ‘फुरहठ’ के पत्ते द्वारा भी हो सकती है।
ऊँ भ्रां म्रां भूँ भैरवाय स्वाया।
ऊँ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाया।
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