एक बार पाण्डु पुत्र भीमसेन ने अपने पूज्य पितामह व्यास जी के सामने यह प्रश्न रखा कि भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल व सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करते हैं। वे मुझे भी व्रत करने को कहते हैं। परंतु मेरा उत्तर होता है कि मैंने विधिवत् भगवान की पूजा की है। दान भी देता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता।
व्यास जी ने भीम से कहा- हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा व स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रतिमास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो। अपने पितामह व्यास का कथन सुनकर भीमसेन ने कहा- हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि मैं भूख को सहन नहीं कर सकता। मेरे पेट में वृक नामक अग्नि है। इसलिए मैं तो भोजन के बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से ही वह शांत रहती है। इसलिए पूरा व्रत तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है। अतः आप मुझको कोई अन्य साधन बताइए।
श्री व्यास जी बोले- पुत्र! एकादशी का व्रत एक ऐसा उपाय है जिसके द्वारा मनुष्य थोड़ी सी साधना से ही अनंत फल प्राप्त कर लेता है। विष्णु भगवान के उपासक, संत सन्यासी ही नहीं, सामान्य जन भी वर्ष भर, प्रत्येक मास की हर पक्ष की एकादशी का व्रत रखते हैं। इतना ही नही अधिक मास में आने वाली एकादशियों का भी व्रत करते है । प्रत्येक एकादशी का अपना महत्व है। नरक यातना से बचने के लिए
एकादशी व्रत तो करना ही चाहिए।
श्री व्यास जी बोले- पुत्र! एकादशी का व्रत एक ऐसा उपाय है जिसके द्वारा मनुष्य थोड़ी सी साधना से ही अनंत फल प्राप्त कर लेता है। विष्णु भगवान के उपासक, संत सन्यासी ही नहीं, सामान्य जन भी वर्ष भर, प्रत्येक मास की हर पक्ष की एकादशी का व्रत रखते हैं। इतना ही
नही, अधिक मास में आने वाली एकादशियों का भी व्रत करते हैं। प्रत्येक एकादशी का अपना महत्व है। नरक यातना से बचने के लिए एकादशी व्रत तो करना ही चाहिए। इस वर्ष ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष, एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ 10 जून 2022 शुक्रवार के दिन है।
धर्मशास्त्र व कर्मकाण्ड के ज्ञाता श्री व्यास जी के वचन सुनकर भीमसेन भयभीत हो गये व कांप कर कहने लगे कि मैं क्या करूँ? मास में दो व्रत मुझ से नही सधेंगें। तब व्यास जी ने कहा कि पुत्र एक वर्ष में एक एकादशी का व्रत तो कर लोगे। भीम ने स्वीकृति देते हुए अपना शीश हिलाया। भीम बोले हाँ वर्ष में एक बार व्रत करने का प्रयत्न अवश्य करूँगा। व्यास जी बोले वृष व मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास में, शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उस एकादशी का नाम ‘‘निर्जला एकादशी’’ है। तुम उस एकादशी का व्रत अवश्य करो।
निर्जला एकादशी ‘उपवास’ विधान इस एकादशी के व्रत में स्नान व आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में 6 माशे जल से अधिक नहीं होना चाहिए अन्यथा जल मद्यपान हो जाता है। कुछ भी खाने से व्रत का पुण्य नष्ट हो जाता है। यदि व्रती एकादशी को सूर्योदय से लेकर
द्वादशी को सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर ब्राह्मणों को दान आदि देना चाहिए। इसके बाद निराहार व सुपात्र ब्राह्मण को भोजन करा कर आप भोजन कर लेना चाहिए। इस निर्जला एकादशी का फल एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के फल के बराबर होता है।
व्यास जी कहने लगे- हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन के लिए मनुष्य निर्जल रहने से पापां से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उनको यमदूत आकर नहीं घेरते। विधि-विधान से व्रत करने वाले को भगवान के पार्षद स्वर्ग ले जाते है । ‘हे पुत्र!’ संसार में सब एकादशियों में श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए और गौदान करना चाहिये। इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं।
निर्जला व्रत करने के पूर्व भगवान का पूजन कर संकल्प लेना चाहिए। संकल्प में भगवान से यह प्रार्थना करें- हे भगवन! आज मैं श्रद्धापूर्वक निर्जला एकादशी का व्रत रख दूसरे दिन ही जल व भोजन ग्रहण करूंगा। प्रभु आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हों। इस दिन जल से भरा हुआ घड़ा, वस्त्र से ढककर, यथा शक्ति दान पदार्थो के साथ, सुपात्र ब्राह्मण को देना चाहिए। इस एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति इस दिन अन्न खाते हैं विष्णु भगवान की कृपा से वंचित रहते हैं। हे भीमसेन! श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करने वालों को भगवान का पूजन, यथा शक्ति गौदान, वस्त्र फल, मिष्ठान, दक्षिणा व जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए।
निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, पात्र, उपानह (जूता) आदि का भी दान करना चाहिए। व्यास जी की इस कथा से हमें एक शिक्षा और भी ग्रहण करनी चाहिए वह यह कि- शिष्य को साधना, पूजा या व्रत आदि में अपनी कमजोरी को अपने गुरूजनों से नहीं छुपाना चाहिए। जैसे व्यास जी की कृपा से भीमसेन समस्त एकादशियों के पुण्य के भागी बने थे, उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य को चाहे वे महिला हो या पुरूष (रोगी या गर्भवती को छोड़कर) इस दिन उपवास कर पुण्य का भागी बनें।
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