जगत प्रतिपालक भगवान सूर्य नारायण के इन व्रतों का आश्चर्यजनक फल अनेक बार प्रत्यक्ष देखने में आया है। इन व्रतों के प्रभाव से कई सन्तानहीनों को संन्तान प्राप्त हुई। रोग पीड़ित अनेक रोगियों को असाध्य रोगों से छुटकार मिला है। शास्त्र कथन है कि यदि धनहीन व्यक्ति यदि इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करे तो धनवान् होता है और इस व्रत के करने से पापों का प्रायश्चित होता है तथा मनुष्य पापमुक्त होकर सुख प्राप्त करता है।
शास्त्र कथन है-इन व्रतों के प्रभाव से सन्तानहीनों को संन्तान तथा असाध्य रोग से पीड़ित रोगियों को रोगों से छुटकारा मिलता है।
यह व्रत चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को किया जाता है। इसके लिए पहले दिन एकभुक्त आदि के नियमों से संयत होकर प्रतिपदा को एक शुद्ध चौकी पर अनेक प्रकार के कमल के फूल बिछाकर उनमें सूर्य का ध्यान करे । श्वेत वर्ण के सुगन्धित गंध-पुष्पादि से उनका पूजन तथा दही, चीनी, घी, पूए, दूध, भात और फल आदि अर्पित करे । वह्नि और ब्राह्मण को तृप करे । फिर सम्पूर्ण सामग्री का एक-एक ग्रास भक्षण करें और शेष को त्याग दे । उसके पश्चात ब्राह्मण की आज्ञा लेकर भोजन करे । इस प्रकार प्रत्येक मास शुक्ल प्रतिपदा को 1 वर्ष तक व्रत और शिव का दर्शन करने वाला सदैव आरोग्य रहता है।
यह व्रत चैत्र शुक्ल सप्तमी को किया जाता है। इसके लिए एकान्त स्थान गृह को गौ के गोबर से धोकर-लीपकर स्वच्छ करलें और उसके मध्य में एक सुन्दर वेदी बनाकर उसपर अष्टदल कमल का चित्र बनायें। कमल के प्रत्येक दल में निम्नलिखित मूर्तियों को स्थापित करें-
पूर्व की ओर कमलदल पर ऋतुकारक दो ‘गन्धर्व’, अग्नेयकोंण में कमलदल पर ऋतुकारक दो ‘गन्धर्व’, दक्षिण दिशा के कमलदल पर दो ‘अप्सराएँ’, नैऋर्त्यकोंण के कमलदल पर दो ‘राक्षस’ ‘राक्षस’, पश्चिम दिशा के कमलदल पर ऋतुकारक दो ‘महानाग’, वायव्यकोण के कमलदल पर दो ‘यातुधान’, उत्तरदिशा के कमलदल पर दो ‘ऋषि’ और ईशानकोंण के कमलदल पर ‘सूर्य, एवं ‘ग्रह’ का स्थापन करें। फिर उनका यथाक्रम अलग-अलग गंध, पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य से पंचोपचार पूजन करके सूर्य के निमित्त आठ-आठ आहुतियाँ दें तथा प्रत्येक के निमित्त एक-एक ब्राह्मण को भोजन करायें। इस प्रकार शुक्ल पक्ष की प्रत्येक सप्तमी को एक वर्ष तक व्रत करने वाले को सूर्य कृत सभी अरिष्टों का नाश हो सूर्य लोक की प्रप्ति होती है।
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