रक्षाबंधन विशेष…

रक्षाबंधन विशेष…

रक्षाबंधन पर विशेष:- (तीन अगस्त सोमवार को है इस बार रक्षाबंधन) :-
श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है, इस दिन साधक और विद्वान् ब्राह्मण अपने देश अपने समाज और अपने देशवासियों की सुरक्षा के लिए रक्षासूत्र की पूजा करते हैं और हवन मंत्र आदि के माध्यम से उन रक्षासूत्रों को सिद्ध करते हैं फिर समाज के गणमान्य लोगों, पदाधिकारियों और वहां के प्रधान शासक को

“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल !!

इस मंत्र से उनके हाथों (कलाई) में वो सिद्ध रक्षासूत्र बांधते हैं चुंकि वह रक्षासूत्र समाज और देश की सुरक्षा के लिए बांधा जाता है इसलिए इसको रक्षाबंधन भी कहा जाता है
रक्षाबंधन मूलतः यह पर्व ब्राह्मणों का पर्व है किन्तु इसे भाई बहन के पर्व के रूप में भी जाना जाता है
प्रश्न:- क्या भद्रा में राखी बांधना चाहिए ?
उत्तर :- सनातन शास्त्र में कहा गया है कि भद्रा में सबकुछ कर सकते हैं किंतु दो काम नहीं करनी चाहिए :-
भद्रायां द्वे न कर्तव्यौ फाल्गुनी श्रावणी तथ
अर्थात् भद्रा में दो काम नहीं करना चाहिए पहला फाल्गुनी अर्थात् होलिका दहन और दूसरा श्रावणी अर्थात् रक्षाबंधन
चुंकि रक्षाबंधन ब्राह्मणों का पर्व है इसलिए ब्राह्मण लोग जो अपने यजमानों को समाज के गणमान्य लोगों और सैनिकों पदाधिकारियों शासकों को रक्षाबंधन बांधेंगे उसकी सिद्धि की जाती है इसलिए वो भद्रा में राखी नहीं बांधेंगे
किंतु भाई बहन का रक्षाबंधन तो परस्पर प्रेम का प्रतीक है इसलिए बहनें जब चाहेंगी अपने भाईयों को राखी बांध सकती हैं
एक मनगढ़ंत कहानी चल रही है कि शूर्पणखा ने रावण को भद्रा में राखी बांधी थी इसलिए रावण मारा गया ऐसे मनगढ़ंत कहानी कहने वालों को क्या यह नहीं पता कि रावण को भद्रा में राखी नहीं भी बांधा जाता तो वह मारा ही जाता क्योंकि रावण को उसके कुकृत्य के लिए मारा ही जाता
दूसरी बात कि रावण के समय रक्षाबंधन भाई बहन के पर्व के रूप में जाना ही नहीं जाता था अपितु उस समय इसे ब्राह्मणों के पर्व के रूप में ही जाना जाता था

रावण अपने कुकृत्य और राक्षसी प्रवृत्ति के कारण मारा गया न कि भद्रा में राखी बांधने से, इसलिए इन मनगढ़ंत कहानी कहने वाले पंडितों के ढकोसले से दूर रहिए और भाई बहन का रक्षाबंधन पर्व दिन रात मनाया जायेगा उस पर भद्रा का कोई विचार नहीं
प्रश्न:- रक्षाबंधन का आरंभ कैसे हुआ और किन किन लोगों ने इस पर्व का आरंभ किया ?
उत्तर:- सबसे पहले रक्षाबंधन देवगुरु बृहस्पति ने किया था देवताओं को राखी बांधी थी और देवताओं ने विजय प्राप्त की थी फिर दूसरी बार जब देवासुर संग्राम हुआ और राक्षस विजयी होने वाले थे तो देवगुरु वृहस्पति भगवान के परामर्श पर देवराज इन्द्र की पत्नी शची ने रक्षासूत्र को आगे में रखकर तपस्या की और देवताओं को अपना भाई मानकर उनकी कलाई पर राखी बांधी फलस्वरूप देवताओं की विजय हुई
दूसरी कहानी है कि राजा बलि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु पाताल लोक में उनके दरबार के रक्षक बन गये और अपना गोलोक, वैकुंठ धाम,स्वर्ग आदि भूल गए जिससे विधाता की सृष्टि में अव्यवस्थाओं का आगमन होने लगा, सृष्टि का भरण पोषण असंभव हो गया चारों तरफ त्राहि त्राहि मचने लगी, तब माता महालक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि की भक्ति के मोहपाश से मुक्त करने हेतु पाताल लोक में गईं और राजा बलि को अपना भाई मानकर उनकी कलाई में राखी बांधकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि मेरे राखी के प्रभाव से आपको कोई भी पराजित नहीं कर सकता है और आप आपका साम्राज्य हमेशा सुरक्षित रहेगा जब-तक आप हमसे इसी श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को राखी बंधवाते रहेंगे
कहा जाता है कि उस दिन से लेकर आज तक आज भी राजा बलि अपनी बहन माता महालक्ष्मी जी से राखी बंधवाने और अपने राज्य को देखने पृथ्वी लोक में आते हैं और माता महालक्ष्मी जी भी इस दिन अपने भाई राजा बलि को राखी बांधने श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को पृथ्वी पर आती हैं
रक्षाबंधन पर्व भाई बहन का दिन रात मनाया जायेगा किन्तु जो ब्राह्मण राखी बांधेंगे वो दिन में साढ़े आठ बजे भद्रा समाप्त हो जाने के बाद दिन भर और विशेष परिस्थिति में रात्रि में भी राखी बांध सकते हैं
अपूर्व संयोग होगा इस बार के रक्षाबंधन पर्व में जब श्रावण मास की अंतिम सोमवारी भी होगी और रक्षाबंधन भी

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