कैसे करें दीपावली पूजन

कैसे करें दीपावली पूजन

एश्वर्यप्रद महालक्ष्मी पूजा विधान-
दीपावली का पर्व सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, वैभव और लक्ष्मी आगमन का पर्व है, लक्ष्मीजी को समृद्धि की आराध्य देवी माना गया है। दीपावली पर्व इनकी आराधना और पूजन का सिद्धि पर्व है। दीपावली की रात्रि में शुभ लग्न-मुहूर्त में विधि-विधान सहित लक्ष्मी पूजन किया जाय, तो यह पर्व सम्पूर्ण वर्ष समृद्धि प्रदायक व्यतीत होता है। सभी वर्ग के लोग चाहे वह व्यापारी हों, नौकरी पेशा हो, अथवा कृषि इत्यादि अन्य कार्य में संलग्न हो, उन्हें सुख-समृद्धि की कामना तो होती ही है, और क्यों न हो। लक्ष्मी जिसके घर निवास न करती हो उसे तो आज के युग में कोई श्रीमान भी नहीं कहता।
अतः प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को प्रत्येक वर्ष दीपावली की रात्रि में शुभ-लग्न मुहूर्त में परिवार के साथ बैठकर लक्ष्मीजी को घर में स्थिर करने के लिये माता लक्ष्मी से सम्बन्धित कोई न कोई साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए। क्योंकि लक्ष्मीजी ही जीवन को स्थिरता देने वाली, आत्म-विश्वास प्रदान करने वाली, सांसारिक दुःखों को दूर करने वाली देवी है।
दीपावली के दिन इस साधना में रूची रखने वाले प्रत्येक साधक को लक्ष्मी साधना का फल अवश्य प्राप्त होता है, दिन में लक्ष्मी साधना उचित नहीं है। गोधूलि बेला के पश्चात्््््््् स्थिर लग्न में ही पूजा कार्य प्रारम्भ करना चाहिए।

आगे सभी प्रकार के मुहूर्त, पूजन एवं विधि-विधान स्पष्ट किये जा रहे हैं-
बही खाता लाने का मुहूर्त-
बहुत से व्यापारी अपना व्यापार वर्ष दीपावली से प्रारम्भ करते हैं, इस के लिये बही खाते पहले से ही लाने की आवश्यकता रहती है, और यह कार्य शुभ मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए। सर्वार्थ सिद्धि-अमृत सिद्धि योग बन रहा हो तो, अधिक शुभ होता है, इस योग ‘मुहूर्त’ में व्यापारियों को बही खाते लाने चाहिए। इनका पूजन तो दीपावली के दिन ही सम्पन्न किया जाता है।

धन त्रयोदशी-
शास्त्रों में धन त्रयोदशी को ‘कुबेर साधना दिवस’ माना गया है, और इस दिन श्री यक्षराज कुबेर की पूजा करने का विशेष विधान है। कुबेर, लक्ष्मी के सेवक-द्वारपाल, खजाने के रक्षक देव हैं, इनकी कृपा से ही लक्ष्मी का आगमन होता है, इस लिए धन त्रयोदशी के दिन सांयकाल स्थिर लग्न के मुहूर्त में विधि-विधान सहित कुबेर पूजा सम्पन्न करनी चाहिए, इस के लिए इस वर्ष 2022 में 22 अक्तूबर सांय 6 बजे के बाद त्रयोदशी तिथि आरम्भ होगी, और स्थिर लग्न वष सांयकाल 07ः00 से 08ः55 बजे तक रहेगी। धन त्रयोदशी के दिन कुबेर पूजा के लिये यह अत्यन्त शुभ मुहूर्त होगा। पूजा के सम्बन्ध में यह नियम है, कि पूजा शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ अवश्य हो जानी चाहिए। इस हेतु साधक अपने पूजा स्थान को पहले से ही साफ-सुथरा कर लें, और उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर, सुगंध युक्त गुलाब के फूलों से सजा कर पीला वस्त्र बिछा दें, और ‘प्राण प्रतिष्ठित कुबेर यंत्र’ स्थापित कर दें, कुबेर यंत्र के चारों ओर चार ‘4 लघु नारियल’ स्थापित कर चावल, कुंकुम, नैवेद्य आदि से पूजन करें, और उसके सामने ही सिक्के रूपये इत्यादि रखें, और इसके पश्चात् कुबेर मंत्र की तीन माला का जप स्फटिक की 108 दाने की माला से करें।

कुबेर मंत्र- ऊँ श्रीं ऊँ हृीं श्रीं हृीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः।

कुबेर मंत्र की तीन मालाओं का जप करने के पश्चात् इस अवसर पर साधक को अपनी इच्छा तथा श्रद्धा के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए।

दीपावली पूजन क्रम-
इस वर्ष दीपावली 24 अक्तूबर 2022 के दिन है, अमावस्या सांय 5ः15 के बाद लगेगी। इस दिन प्रातः से ही साधक को प्रसन्न मन से परिवार के सदस्यों सहित शुभ कार्य प्रारम्भ करना चाहिए, दीपावली दिवस नये कार्यों को प्रारम्भ करने, नये विचारों को क्रिया रूप देने, नये संकल्प लेने आदि का दिन है। इस लिए मन में द्वेष इत्यादि भूल कर भी नहीं लाने चाहियें। परिवार की आर्थिक उन्नति हेतु चिन्तन अवश्य करना चाहिए। इस दिन प्रातः अपने व्यापार स्थल पर सफाई कर नये वस्त्र-गद्दी तथा बही खाते स्थापित करने चाहिए, इस अवसर पर धन त्रयोदशी के दिन मंगवाई गई बही (एकाउन्ट बुक) सांयकाल के लक्ष्मी पूजन हेतु तैयार रखें।

महालक्ष्मी पूजन-
दीपावली के दिन महालक्ष्मी का पूजन केवल ‘स्थिर लग्न’ में ही सम्पन्न किया जाना चाहिये, और अमावस्या की रात्रि को वृषभ और सिंह मात्र दो स्थिर लग्न आते हैं, अतः इन लग्न-मुहर्त में ही लक्ष्मी पूजन सम्पन्न होना चाहिये। इस वर्ष ‘वृषभ लग्न’ दीपावली के दिन ‘सांयकाल’ 6: 45 से 7: 20 बजे तक है। तथा ‘सिंह लग्न’ मध्य रात्रि को 2:15 के बाद पडेगा। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इन दोनो लग्नों को स्थिर लग्न माना जाता है, माता लक्षमी की स्थिरता के लिए पूजा स्थिर लग्ल में ही की जाती है। दीपावली पूजन के लिये यह दोनों लग्न (वृष तथा सिंह) अत्यन्त विशेष फलकारक तथा प्रभावशाली होती हैं।
व्यापारियों के लिए वृष लग्न से अधिक उत्तम सिंह लग्न का मुहूर्त होता है। दीपावली के दिन प्रातः उठ कर स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर एक मिट्टी के दीपक में ‘अभिमंत्रित पूजा का सिन्दूर’ और शुद्ध घी मिला कर लेप बनाएं और अपने पूजा स्थान में अथवा दुकान में ‘पन्द्रहिया यंत्र’ तथा स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करें। साथ ही ‘शुभ-लाभ’ ‘श्री महालक्ष्म्यै नमः’ ‘श्री कुबेरायै नमः’ आदि मांगलिक चिन्ह भी अंकित करें।
घर के मुख्य द्वार पर आम या अशोक वृक्ष के पत्तों से सजावट कर तोरण द्वार बनाये तथा एक बड़े ताम्र कलश में गृह लक्ष्मी जल भर उस पर कुंकुम आदि से स्वास्तिक चिन्ह अंकित करें, और इस कलश पर थोड़े चावल, एक काली हल्दी की गांठ, गंुजा के 5-7 बीज एक पीले कपड़े में बांध कर रख दें।
रात्रि कालीन दीपावली पूजन हेतु साधक को पूजन सामग्री आदि की व्यवस्था पहले से ही कर लेनी चाहिए। पूजन हेतु निम्न वस्तुऐं आवश्यक हैं- चावल, नारियल, हल्दी का पाऊडर, धूप, दीप, कपूर, दूध का प्रसाद (मिठाई), मौसम के फल, पीले पुष्प, कोरे पान के 5 पत्ते, 5 सुपारियाँ, रोली, कलावा, दूब, दूध, दही, घी, मधु, शक्कर, गुड़, श्वेत वस्त्र, शुद्ध जल, तांबे का कलश, चांदी का सिक्का सिन्दूर, रूई, कलम, बही खाते, गणेश, लक्ष्मी की मूर्ति अथवा चित्र, खील और बताशे,
मंत्र जप के लिए 108 दाने की कमलगट्टे की माला, हल्दी की माला, पांच पीली कौड़ी, दो मोती शंख, एक ताम्रपत्र पर अंकित प्राण-प्रतिष्ठित श्रीयंत्र।
यह साधना विधान सभी प्रकार के साधकों के लिए उपयोगी है, चाहे वह नौकरी वाले हों या व्यापार वाले, और प्रत्येक साधक को अपने पूरे परिवार सहित प्रसन्न मन से वृष लग्न अथवा सिंह लग्न में लक्ष्मीजी का पूजन अवश्य करना चाहिए। सर्वप्रथम जिस स्थान पर लक्ष्मी पूजन करना हो उस स्थान को साफ कर जल से धो दें, फिर लकड़ी का एक बाजोट या चौकी रख कर उस पर पीला वस्त्र बिछा कर सामने लक्ष्मी-गणेश का चित्र अथवा प्रतिमा के अतिरिक्त ‘ताम्र पात्र पर अंकित श्रीयंत्र’ एक अलग पात्र में बीचों बीच स्थापित कर दें, एक दूसरी थाली में चांदी के सिक्के आभूषण इत्यादि रखें, श्रीयंत्र के सामने ‘पांच पीली कौड़ी’ स्थापित करें, श्रीयंत्र के चारों ओर घेरे के रूप में 108 दाने की कमल बीजों की (कमलगटट्े की) माला को स्थापित करें, लक्ष्मीजी के दोनों ओर एक-एक ‘मोती शंख’ भी रखें, तथा लक्ष्मी के चरणों में शुद्ध मधु रखें।
व्यापारी सर्वप्रथम अपने बही खाते को खोल कर तीसरे, पृष्ठ पर अभिमंत्रित पूजा के सिंदूर से स्वास्तिक बनायें और ‘शुभ-लाभ’ ‘श्री गणेशाय नमः’ लिखें।
सामने बाजोट पर बीचो-बीच चांदी की लक्ष्मी गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पास ही एक ताम्र कलश में आधा जल भर कर एक पानी वाला साबुत नारियल कलावा बांधकर स्थापित करें, तथा अब विधि-विधान सहित पूजा प्रारम्भ करें- इस समय अन्य सामग्री को थाली में रख कर साधक सुन्दर शुद्ध वस्त्र पहन कर अपनी गृहलक्ष्मी के साथ पूजा में बैठें, सर्वप्रथम गणेश पूजा की जाती है, इस के लिए गणेश चित्र, मूर्ति के सम्मुख घी का दीपक जलावें। साथ ही अगरबत्ती भी, अब दोनों हाथ जोड़ कर गणपति का आवाहन करें, और यह प्रार्थना करें, कि हे देव, आप ऋद्धि-सिद्धि सहित मेरे घर पधारें, और मेरी पूजा तथा अन्य कार्य सफल हों। तीन माला हल्दी की 108 दाने की माला से गणपति बीज मंत्र की जप करें- ऊँ गं गणपतये नमः।

महालक्ष्मी ध्यान स्तुति-
तत्पश्चात् भगवती लक्ष्मी का ध्यान स्तुति द्वारा आवाहन करें-
ऊँ कान्त्या कांचन सन्निभां हिमगिरि प्रख्यैश्चतुर्भिर्गजैः।
हंस्तोत्क्षिप्त हिरण्मया मृत घटै रासिच्य मानां श्रियम्।।
विभ्राणा वरमब्ज युग्मायं हस्तैः किरिटोज्ज्वलाम्।
क्षोमाबद्ध नितम्बबिम्बलसितां वन्देऽरविन्द स्थिताम्।।
इसके बाद हाथ में जल ले कर संकल्प ले, कि हे महालक्ष्मी, आप अपनी सभी शक्तियाँ सहित मेरे घर में स्थान ग्रहण करें, मैं अपने सब क्लेश, दुःख, दारिद्रय, भय, पीड़ा, निवारण हेतु तथा सर्व कार्य सिद्धि हेतु आपका यह पूजन सम्पन्न कर रहा हूँ। इसी के साथ ही पुनः हाथ में जल लें, और अपना नाम, गोत्र आदि उच्चारण करते हुए, यह संकल्प करें, कि मैं इस अमुक दिन अपने पूरे परिवार सहित महागणपति महालक्ष्मी का पूजन कर रहा हूँ। सभी देवता साक्षी हैं, और मेरे कार्यों में सहयोगी हों, यह कहकर जल छोड़ दें। तत्पश्चात् कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनायें, उस पर चावल, मौली अर्पित करें, तथा वरूण देव का आह्वान करते हुए उन्हें नमस्कार करें। अपने बांयें हाथ में जल ले कर दाहिने हाथ में पुष्प लेकर जल को सभी पूजा सामग्री पर थोड़ा-थोड़ा छिड़कें।
गुरू पूजन- साधना, पूजा की सफलता हेतु गुरू का आशीर्वाद आवश्यक है, इस हेतु यदि अपने मार्गदर्शक गुरूजी का चित्र उपलब्ध हो तो सामने स्थापित करें, और पुष्प, चन्दन, अक्षत आदि समर्पित कर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें-
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरूः साक्षात्पंब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
गुरू पूजन के पश्चात् महालक्ष्मी पूजन प्रारम्भ करे, अगरबत्ती, घी का दीपक, तेल का दीपक इत्यादि प्रज्वलित कर दें, शुद्ध शान्त मन से लक्ष्मी का आवाहन करते हुऐ, ध्यान करते हुए अपने आप को पूर्ण रूप से समर्पित करते हुए महालक्ष्मी पूजन करें।—–
सर्वप्रथम आसन के लिये यदि उपलब्ध हो तो कमल पुष्प समर्पित करें, अथवा कोई भी पुष्प समर्पित कर सकते हैं। फिर हाथ में जल लेकर लक्ष्मीजी को जल अर्पित करें, फिर पुनः शुद्ध जल लेकर श्री महालक्ष्मी श्री यंत्र को शुद्ध जल से, पंचामृत से, फिर पुनः शुद्ध जल से स्नान कराकर एक बाजोट के बीचो बीच स्थापित करें और सर्वप्रथम मौली (कलावा) समर्पित करें, फिर अबीर, गुलाल, कुंकुम, केसर आदि चढ़ायें, उसके पश्चात् पुष्प, सुपारी पंचामृत अर्थात् एक पात्र में घी, दूध, दही, शहद, शक्कर मिलाकर अर्पित करें, इसके पश्चात् सिन्दूर विशेष रूप से अर्पित करें, यह सौभाग्य द्रव्य है, इसके साथ ही काजल, हल्दी तथा कुंकुम भी चढ़ायें, और सामने ही पांच पीली कौड़ी भी स्थापित करें, फिर हाथ जोड़कर यह प्रार्थना करें, कि मेरे घर परिवार में हर समय सुख, सौभाग्य बना रहे, इसके साथ ही नैवेद्य अर्पित करें। लक्ष्मी के दोनों ओर जो दो मोती शंख स्थापित किये गये हैं वे विशेष प्रयोग हेतु दिये गये हैं, ये ऋद्धि-सिद्धि के प्रतीक हैं, कुंकुम, अबीर, केसर से इनका भी पूजन कर इस पर मौली चढ़ायें, और थोड़ी दुग्ध धारा करें, तत्पश्चात् इन पर पुष्प अर्पित कर निम्न मंत्र का इक्कीस बार जप करें-
ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्ष्म्यै नमः।
पूजन समाप्ति के पश्चात् एक मोती शंख अपने घर में धन-धान्य इत्यादि रखने के स्थान पर तथा दूसरा मोती शंख अपने व्यापार स्थल पर अथवा कार्यालय में स्थापित कर दें। लक्ष्मीजी के सामने स्थापित पांच पीली कौड़ी पंच लक्ष्मीयों के- सिद्ध लक्ष्मी, ज्येष्ठा लक्ष्मी, वसुधा लक्ष्मी, नीलास्म लक्ष्मी, त्रिपुर सुन्दरी लक्ष्मी की प्रतीक हैं, इन्हें पूजन कर कुंकुम, केसर, चावल, पुष्प अर्पित करें, और लक्ष्मी बीज मंत्र का जप करें। प्रत्येक शक्ति के सामने कमल गटट्े की 108 दाने की माला से लक्ष्मी बीज मंत्र का एक माला जप करते हुए, एक पुष्प अर्पित करें।
लक्ष्मी बीज मंत्र- ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।
प्रत्येक माला जप के साथ एक पुष्प अर्पित करना अनिवार्य है, इस प्रकार पांचों लक्ष्मी स्वरूपों का पूर्ण पूजन करने के पश्चात् महालक्ष्मी जी की आरती सम्पन्न करें, और नमस्कार एवं अपने अपराधों की क्षमा मांगते हुए देवी के, अपने घर में स्थायी आवास की प्रार्थना करते हुए प्रसाद ग्रहण करें, और अपने परिवार के अन्य परिजनों को भी मिष्ठान्न इत्यादि वितरित करें।
विशेष- लक्ष्मीजी से सम्बन्धित बीज मंत्र तथा अन्य सभी मंत्रों का जप कमल गट्टे की माला से ही सम्पन्न किये जाने चाहिए, अन्य प्रकार की माला का प्रयोग वर्जित है, पूरी रात्रि दीपक जलते रहने देना चाहिए, तथा पूजन सामग्री को वहां से न हटायें। दूसरे दिन प्रातः काल सूर्योदय के समय श्रीयंत्र व लक्ष्मीजी का चांदी पर बना चित्र, सिद्ध पीली कौड़ी तथा दोनो मोती शंख में से पीली कौड़ी को छोड़कर शेष सभी अभिमंत्रित वस्तुओं को अपने पूजा स्थान में स्थापित करें। इनमें से एक मोती शंख को अपने घर में तथा दूसरे को अपने व्यापार स्थल पर रखें, अन्य सारी सामग्री को एक पीले वस्त्र में बांध कर रख दें, तथा कार्तिक पूर्णिमा को इसे पीपल वृक्ष में अथवा बहते जल में समर्पित कर दें।

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