श्री महालक्ष्मी व्रत अश्विन शुक्ल अष्टमी के दिन शास्त्रोक्त माना जाता है, इस वर्ष यह व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी 4 सितम्बर 2022 से अश्विन कृष्ण अष्टमी 18 सितम्बर 2022 तक मन गया है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से अश्विन कृष्ण अष्टमी तक भगवती महालक्ष्मी का ‘श्रीमहालक्ष्मीव्रत’ होता है। यह व्रत सोलह दिनों का होता है। शास्त्रों पुराणों में इस व्रत का बहुत महत्व बताया गया है।
इस व्रत का अनुष्ठान करने वाले अपनी कामनाओं को ही नहीं अपितु धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तक प्राप्त कर लेते हैं। जिस प्रकार तीर्थाें में प्रयाग, नदियों में गंगाजी श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार व्रतों में यह महालक्ष्मी व्रत श्रेष्ठ है।
भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को प्रातःकाल उठकर सोलह बार हाथ-मुँह धोकर स्नानादि से निवृत्त हो चन्दनादि निर्मित भगवती महालक्ष्मी की प्रतिमा का स्थापन करे। उसके समीप सोलह सूत्र के डोरे में सोलह गाँठ लगाकर ‘महालक्ष्म्यै नमः’ इस नाम मंत्र से प्रत्येक गाँठ का पूजन करके लक्ष्मी की प्रतिमा का षोडशोपचार-पूजन करे। इसके पश्चात् निम्न मंत्र पढ़कर डोरे को दाहिने हाथ में बाँध ले –
धनं धान्यं धरां हर्म्यं कीर्तिमायुर्यशः श्रियम्।
तुरगान् दन्तिनः पुत्रान् महालक्ष्मि प्रयच्छ मे।।
सोलह दूर्वा और सोलह अक्षत लेकर कथा सुने। इस प्रकार सोलह दिन तक व्रत करके अश्विन कृष्ण अष्टमी को रात्रि जागरण कर विसर्जन करें।
सोलहवें दिन डोरे को खोलकर लक्ष्मीजी के पास रख देना चाहिये। इस व्रत में एक बार फलाहार किया जाता है तथा आटे के सोलह दीपक बनाकर दक्षिणा के साथ ब्राह्मणों को दान किया जाता है।
एक लोक कथा के अनुसार एक राजा के दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी के अनेक पुत्र थे, परंतु छोटी रानी के एक ही पुत्र था। बड़ी रानी ने एक दिन मिट्टी का हाथी बनाकर उसका पूजन किया, किंतु छोटी रानी इससे वंचित रहने के कारण उदास हो गयी। उसका लड़का माँ को उदास देख इंद्र से ऐरावत हाथी माँग लाया और बोला – माँ! तुम सचमुच के हाथी की पूजा करो। रानी ने ऐरावत की पूजा की, जिसके प्रभाव से उसका पुत्र विख्यात राजा हुआ। अतः इस दिन लोग हाथी की पूजा भी करते हैं। काशी में लक्ष्मी कुण्ड पर सोलह दिन का महालक्ष्मी का मेला लगता है। यहाँ भक्तगण नियम पूर्वक लक्ष्मीजी का दर्शन करते हैं।