निर्विध्न सफलता देते हैं, सिद्धि विनायक।

निर्विध्न सफलता देते हैं, सिद्धि विनायक।

सिद्धिविनायक व्रत श्री गणेश चतुर्थी 31 अगस्त 2022


गणेशजी हर कार्य में प्रथम पूज्य हैं अनादिकाल से ही गणेशजी की पूजा होती आई है। भगवान शिव और पार्वती की विवाह की रीति में शिव एवं पार्वतीजी ने मुनियों की आज्ञा से आदि गणेशजी का पूजन किया। यह प्रसंग श्रीरामचरितमानस में बालकांड में वर्णित है। मुनि अनुशासन गणपतिहि पूजेउ संभु भवानि। कोउ मुनि संसय करै जनि सुर अनादि जिय जानी।। मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वतीजी ने गणेशजी का पूजन किया। मन में देवताओं को अनादि समझकर कोई इस बात को सुनकर शंका न करें। सृष्टि के प्रारंभ से ही भगवान गणपति के रूप में प्रकट होकर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के कार्य में सहायक होते आये हैं क्योंकि सृष्टि के उत्पादन में आसुरी शक्तियों द्वारा विघ्न बाधा उपस्थित की जाती रही है। तभी तो हम हर कार्य के प्रारंभ में कार्य निर्विघ्न संपन्नता के लिए गणेशजी से निवेदन करते हैं- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभा, निर्विघ्नं कुरू में देव सर्वकार्येषु सर्वदा। वेदों में, पुराणों में, स्मृतियों में गणपति उपासना की बात मिलती है। यंत्र-मंत्र-तंत्रशास्त्र में भी गणेशजी से संबंधित कई साधनायें मिलती है। तैंतीस कोटि देवताओं में श्रीगणेशजी का सर्वप्रथम महत्व है। किसी भी देव की आराधना के आरंभ में, किसी भी सत्कर्मानुष्ठान में, किसी भी उत्कृष्ट से उत्कृष्ट एवं साधारण से साधारण लौकिक कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत अर्चन एवं वंदन किया जाता है। गणपति विघ्नविनाशक हैं। इनके सामने विघ्न ठहर ही नहीं सकते हैं। जब विघ्नों ने ब्रह्माजी से शिकायत की हम कहां जाए तो ब्रह्मा पार्वतीजी से शिकायत करते हैं यह बात कवि रत्नाकर से छंद में कितनी रूचिकर बन पड़ी है। सुड सौं लुकाई औ ‘दवाइदंत दीरघ् सौं, दुरित दुरूह दुख दारिद्र बिदारे देत। कहें ‘रत्नाकर’ विपत्ति फटकारैं फूंकि, कुमति कुचार पै उछारि छार डारें देत।। करनी बिलोकि चतुरानन गजानन की, अंब सौ बिलखि यौं उराहनौ पुकारे देत। तुमही बतावों कहां विघ्न विचारे जाहिं, तीनों लोक माहिं ओक उनकौं उजारे देत। श्री गणेशजी के द्वादश नामों का लोक में सर्वाधिक महत्व एवं प्रचलन है। जो व्यक्ति विद्यारम्भ के समय, विवाह के समय, नगर में, नवनिर्मित भवन में प्रवेश करते समय, यात्रा में कहीं भी बाहर जाते समय, संग्राम के अवसर पर अथवा किसी भी प्रकार की विपत्ति के समय यदि श्रीगणेश के बारह नामों का स्मरण करता है तो उसके उद्देश्य अथवा मार्ग में किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं आता है।

श्रीगणेशजी के बारह नाम निम्न प्रकार से है। 1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7. विघ्ननाशक, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचन्द्र, 12. गजानन। सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।। विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमें तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नतस्य न जायते।।

गणेशजी के कई अवतार हैं उनमें से आठ अवतार प्रसिद्ध हैं – 1. वक्रतुण्ड, 2. एकदंत, 3. महोदर, 4. गजानन, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7. विहनराज, 8. धूम्रवर्ण। गणेशजी को अपनी पूजा में दूर्वा सर्वाधिक प्रिय है। दूर्वा के 21 पत्रों से पूजन करना गणेशजी को शीघ्र प्रसन्न करता है। गणेशजी की पूजा सामान्यतः हरिद्रा की (गोली) मूर्ति पर भी की जाती है। हरिद्रा में मंगलकर्षिणी शक्ति है तथा वह लक्ष्मी का प्रतीक भी है। नारद पुराण में तो गणेशजी की सुवर्णमयी प्रतिमा बनाने का आदेश देकर, उसके अभाव में हरिद्रा से उसे बान लेने की छूट दी गयी है। गोमय में लक्ष्मी का स्थान होने के कारण लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गणेशजी की उपासना गोमय (गोबर) मूर्ति पर की जाती है। गणेशजी की विशेष कृपा शीघ्र पाने के लिए श्वेत अर्क (सफेद आर्क) की जड़ को पुष्य नक्षत्र युक्त रविवार के दिन मंत्रोच्चारणपूर्वक उखाड़कर उस जड़ से अंगूठे के बराबर की गणेशजी की मूर्ति बनाकर पंचामृत से उसका अभिषेक करके पूजा में रख लें, जो बहुतों द्वारा अनुभूत है तथा इसका संकेत अग्निपुराण के 301वें अध्याय में भी मिलता है। अगर पुष्ययुक्त रविवार अलभ्य हो तो केवल पुष्य नक्षत्र के दिन भी उक्त श्वेत आक की जड़ को उखाड़कर पूजा के लिए उसका उपयोग कर सकते हैं। श्रीगणेशजी की लकड़ी की मूर्ति बनाकर घर के बहिद्वार के ऊर्घ्वभाव में उसकी स्थापना करने पर गृह मंगलयुक्त हो जाता है। सामान्यतः यदि व्यक्ति नियमित रूप से श्रीनारद पुराणोक्त संकटनाशक गणेशस्तोत्रम का प्रतिदिन पाठ करता रहे तो जीवन के सारे अमंगल मिट जाते हैं और जीवन सुखसमृद्धिदायक बन जाता है।

संकटनाशनगणेशस्तोत्रमः-
नारद उवाच
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदंतं द्वितीयकम्। तृतीय कृष्णापिङ्गक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।2।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकमेच च। सप्तमं विघ्नराजं च धम्रवर्णं तथाष्टमम्।।3।।
नवमं भालचन्द्रं च दशम तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थीं लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम्।।6।।
ज प े द ् ग ण् ा प ित स् त ा े त्र ं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धि च लभते नाथ संशय।।7।।
अष्टभ्या ब्राह्मणभ्यक्ष्च लिखित्वा यः समर्पयेत्। तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः।।8।।
इति श्रीनारदपुराणे संकटनाश्यान गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

गणेशजी की पूजा उपासना में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न मंत्र उपलब्ध है लेकिन मुख्यतः कुछ मंत्र निम्न प्रकार से है।

  1. प्रणवयुक्त गणेशजी का सबीज मंत्र सर्वाधिक प्रचलित है यह मंत्र है- ‘ऊँ गं गणपतये नमः।’
  2. वैसे प्रणव ऊँ स्वयं ही गणपति रूप है और यह उन्हीं का मंत्र है।
  3. गं शब्द के दोनों ओर प्रणव लगा देने से जो मंत्र बनता है वह गणेशजी का प्रणव सम्पुटित बीजमंत्र कहलाता है- ‘ऊँ गं ऊँ।’
  4. गणेशजी के नाम मंत्र भी उपलब्ध है। इनमें से द्वादशाक्षर मंत्र है- ऊँ नमो भगवते गजाननाय। सप्ताक्षर मंत्र है- श्री गणेशाय नमः।
    अष्टाक्षर मंत्र है- ऊँ श्री निर्विघ्न सफलता की कुंजी है गणपति आराधना गणेशाय नमः।

गणेशजी के गायत्री मंत्र भी हैं यथा-

  1. तत्कराटाय विद्महे, हरित्तमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात।
  2. महोत्कटाग्र विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात।
  3. एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डायधीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।
  4. लम्बोदराय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नोदन्ती प्रचोदयात्।

संतकवि तुलसीदासजी द्वारा रचित विनय पत्रिका में गणपति की स्तुति मंत्र का काम करती है इसके नित्य गायन से घर में सुख संपन्नता एवं आरोग्यता की वृद्धि होती है।

गाइये :- गणपति जगबंदन। शंकर-सुवन भवानी नंदन।। सिद्धि-सदन, गज-वंदन विनायक। कृपा-सिन्धु, सुंदर, सब लायक।। मोदक-प्रिय, मुद-मंगलदाता। विद्या-बारिधि, बुद्धि-विधाता।। मांगत तुलसीदास कर जोरे। बसहिं राम सिय मानस मोरे।।

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