मांगलिक दोष का प्रभाव

मांगलिक दोष का प्रभाव

मंगल दोषः जब भी किसी कुंडली में मंगल लग्न से 1-4-7-8-12 भावों में स्थिर हो तो मंगल दोष होता है, दक्षिण भारत में द्वितीय भाव भी लेते हैं। ऐसी कुंडली का व्यक्ति मांगलिक कुंडली वाला व्यक्ति कहलाता है।

चन्द्र कुण्डली से भी इसी प्रकार देखा जाता है तथा मंगल मिलान के समय मंगल से शुक्र की स्थिति भी देखते हैं। जब भी चन्द्र या शुक्र से भी इन भावों में मंगल हो तो मंगल दोष होता है।

1. प्रथम भाव : जातक के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं।
2. द्वितीय भाव : धननाश पारिवारिक खुशियों का नाश, पत्नी को कष्ट देता है।
3. चतुर्थ भाव : जीवनसाथी को हानि
4. सप्तम भाव : जीवनसाथी से शत्रुता, स्त्रियों से समस्या, यौन रोग, साथी की मृत्यु।
5. अष्टम भाव : वैवाहिक खुशी में कमी, जीवनसाथी का क्षय, दुर्घटनाएं, शल्य चिकित्सा, अत्यधिक कामेच्छा।
6. द्वादश भाव : जेल, पारिवारिक जीवन सुखमय न होना, जीवनसाथी की हानि, दुर्भाग्य।

भयानक (अत्याधिक कष्टकारी) : मंगल सप्तम/अष्टम भाव में सप्तमेश, अष्टमेश को प्रभावित करे तो कामेच्छा अधिक होगी, क्योंकि मंगल शारीरिक गर्मी का कारक है, सूर्य ब्राह्मणीय गर्मी कारक है, इस प्रकार शरीर में जितनी ज्यादा गर्मी होगी, उतनी कामेच्छा अधिक होगी। इसलिए सप्तम/अष्टम भाव के कारण मंगल दोष ज्यादा भयानक होता है।

मंगल मिलान की आवश्यकता: मंगल का विभिन्न भावों पर प्रभाव तथा सुखी विवाहित जीवन के लिए मंगल मिलान आवश्यक है तथा जिस व्यक्ति से किसी का विवाह हो रहा है, उससे उसके विचार मिलेंगे या नहीं इसका निर्णय हम सिर्फ ज्योतिष के आधार पर ही कर सकते हैं। विवाह के समय कुण्डली मिलान करते समय यदि वर-वधु में से एक की कुण्डली में मंगल दोष हो तो दूसरे की कुण्डली में यह दोष होना चाहिए तभी विवाह संभव है नहीं तो इसके दुष्परिणाम पूर्वतः वर्णित हैं।

मांगलिक दोष परिहार

ऐसा नहीं है, मंगल दोष हमेशा ही काफी दुष्परिणाम देता है, अतः कुण्डली में अच्छी स्थिति या उच्च राशि में होने एवं कई अन्य कारणों द्वारा इसके दुष्परिणाम कम या लगभग खत्म ही हो जाते हैं-

1. अगर मंगल इन भावों में (1, 4, 7, 8, 12) अपनी राशि या उच्च की राशि या मूलत्रिकोण राशि में बैठा हो।
2. यदि मंगल के ऊपर राहु की दृष्टि या युति हो तो या मंगल शनि की राशि में हो तो कुछ विद्वानों का मत है कि यह दोष नहीं रहता है।
3. वर-कन्या के समान जन्म कुण्डली के भावों में मंगल बैठा हो या दोनों की कुण्डली में मंगल दोष हो तो यह दोष नहीं रहता।
4. अगर मंगल रूचक योग बना रहा हो तो भी यह दोष नहीं रहता। परन्तु इस पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होना चाहिए।
5. द्वादश में धनु राशि, चतुर्थ में वृश्चिक राशि, सप्तम में वृष अथवा मकर राशि तथा अष्टम में कुम्भ अथवा मीन राशि में मंगल स्थित हो, तो मंगल दोष नहीं होता।
6 यदि बली गुरु और शुक्र स्वराशि, उच्च हो और लग्न या सप्तम भाव में हो तो मंगल दोष नहीं होता।
7. यदि मंगल वक्री, नीच या अस्त हो, तो भी मंगल दोष नहीं होता।
8. मंगल पर सप्तम दृष्टि गुरु की हो, तो भी मंगल दोष भंग माना जाता है।
9. 28-33 वर्ष के बाद मंगल दोष नहीं रहता कारण यह है, 28 के बाद कामेच्छा कम होती है, 21-25 वर्ष के बीच वह तीव्र होती है।

मंगल दोष के लिए उपाय

1 मूंगा/माणिक्य नहीं धारण करना चाहिए।
2 नीला रंग/कपड़े पहन सकते हैं।
3 ऐसा व्यक्ति आउटडोर गेम खेलें, जिससे ज्यादा ऊर्जा व्यय हो।
4 हनुमान चालीसा का पाठ करें।
5 हनुमान/भैरों/गणेशजी के मंत्रों का जाप करें।
6 मंगलवार के व्रत, मंगल स्तोत्र का पाठ, मंगल रत्न का दान करें।
7 बहते हुए जल में शहद, लाल मसूर की दाल, सिन्दूर प्रवाहित करें।
8 मंगल दोष निवारण के लिए पीपल से भी विवाह किया जा सकता है।
9 अगर अनजाने में विवाह मंगल दोष के रहते हो जाए तो दम्पति को मंगल शांति करानी चाहिए एवं प्रत्येक वर्ष की विवाह वर्षगांठ पर मंगल का शांति पाठ करवाना चाहिए।

लग्ये व्यये च पाताले जामित्ते चाष्टमें कुंजों स्त्री भर्तुविनाशच्च भर्ता च स्त्री विनाशचम्।।

अर्थात् मांगलिक दोष लग्न से अधिक प्रबल माना जाता है, लेकिन चन्द्रमा से इसका दोष लग्न की अपेक्षा अल्प होता है। यदि शास्त्रानुसार वर एवं कन्या का मांगलिक दोष भंग हो जाता है, तो उनका दाम्पत्य जीवन सुख एवं प्रसन्नता पूर्वक व्यतीत होता है इसके विपरीत बिना दोष भंग हुए विवाह में समस्याएं होती हैं। अतः विवाह पूर्व मंगल मिलान आवश्यक है।

मंगल योग देखकर किसी प्रकार के वहम या चिंता में नहीं पड़ना चाहिए अपितु कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश एवं शुक्र की स्थिति तथा उन पर पड़ने वाले शुभ या अशुभ प्रभावों का ध्यान पूर्वक अध्ययन करना चाहिए तथा उपायों प्रयोग द्वारा सही दिशा में इसका समाधान ढूढ़ना चाहिए।

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