कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी ‘धनतेरस’ कहलाती है, यह पर्व इस इस वर्ष 2 नवम्बर 2021 मंगलवार के दिन है। वस्तुतः यह पर्व मृत्यु के देवता यमराज, आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरी, तथा देवताओं के कोषाघ्यक्ष यक्षराज कुबेर से सम्बंध रखने वाला पर्व है। इस दिन यमराज के लिये सायंकाल घर के बाहर मुख्य द्वार पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख दीपदान किया जाता है, तथा उसका पंचोपचार विधि से पूजन करना चाहिये। दीपदान करते समय निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिये –
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतामिति।।
यमुनाजी यमराज की बहन हैं इसलिये धनतेरस के दिन यमुना-स्नान का भी विशेष माहात्म्य है। यदि पूरे दिन का व्रत रखा जा सके तो अत्युत्तम है, किंतु संध्या के समय दीपदान अवश्य करना चाहिये –
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्सुर्विनश्यति।।
यम कथा- एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण करते हो, क्या तुम्हें ऐसा करते समय कभी दुःख भी हुआ है, या कभी दया भी आयी है? इस पर यमदूतों ने कहा – महाराज! हम लोगों का कर्म अत्यंत क्रूर है पंरतु किसी युवा प्राणी की असामयिक मृत्यु पर उसका प्राण हरण करते समय वहाँ का करूणक्रन्दन सुनकर हम लोगों का पाषाण हृदय भी विगलित हो जाता है। एक बार हम लोगों को एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चौथे दिन ही हरण करने पड़े। उस समय वहाँ का करूणक्रन्दन, चीत्कार और हाहाकार देख-सुनकर हमें अपने कृत्य से अत्यंत घृणा हो गयी। उस मंगलमय उत्सव के बीच हम लोगों का यह कृत्य अत्यंत घृणित था, इससे हम लोगों का हृदय अत्यंत दुःखी हो गया। अतः हे स्वामिने्! कृपा करके कोई ऐसी युक्ति बताइये जिससे ऐसी असामयिक मृत्यु न हो। इस पर यमराज ने कहा कि जो धनतेरस के पर्व पर मेरे उद्देश्य से दीपदान करेगा, उसकी असामयिक मृत्यु नहीं होगी। भगवान् धन्वन्तरि का जन्मोत्सव- भगवान् धन्वन्तरि का जन्मोत्सव कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। समुंद्र मन्थन के समय भगवान् धन्वन्तरि का प्राकट्य माना जाता है। देव-दानवों द्वारा क्षीरसागर का मन्थन करते समय भगवान् धन्वतरि संसार के समस्त रोगों की औषधियों को कलश में भरकर प्रकट हुये थे। उस दिन त्रयोदश तिथि थी। इसलिये उक्त तिथि में सम्पूर्ण भारत में तथा अन्य देशों में (जहाँ हिन्दुओं का निवास है) भगवान धन्वन्तरि का जयंती-महोत्सव मनाया जाता है। विशेषकर आयुर्वेद के विद्वान् तथा वैद्य समाज की ओर से सर्वत्र भगवान् धन्वन्तरि की प्रतिमा प्रतिष्ठित की जाती है, और उनका पूजन श्रद्धाभक्ति पूर्वक किया जाता है, एवं प्रसाद वितरण करके लोगों के दीर्घ जीवन तथा आरोग्य लाभ के लिये मंगल कामना की जाती है। दूसरे दिन संध्या समय जलाशयों में प्रतिमाओं का विसर्जन भजन-कीर्तन करते हुए किया जाता है। इस प्रकार भगवान् धन्वन्तरि प्राणियों को रोग-मुक्त करने के लिये भव-भेषजावतार के रूप में प्रकट हुये थे। धन के देवता कुबेर- शास्त्रों में धन त्रयोदशी को ‘कुबेर साधना दिवस’ भी माना गया है, और इस दिन श्री यक्षराज कुबेर की पूजा करने का विशेष विधान है। कुबेर, लक्ष्मी के सेवक-द्वारपाल, खजाने के रक्षक देव हैं, इनकी कृपा से ही लक्ष्मी का आगमन होता है, अतः धन त्रयोदशी के दिन विधि-विधान सहित कुबेर पूजा सम्पन्न करनी चाहिए। पूजा के सम्बन्ध में यह नियम है, कि पूजा शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ अवश्य हो जानी चाहिए। इस हेतु साधक अपने पूजा स्थान को पहले से ही साफ-सुथरा कर लें, और उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर, सुगंध युक्त गुलाब के फूलों से सज्जा कर पीला वस्त्र बिछा दें, और ‘प्राण प्रतिष्ठित कुबेर यंत्र’ स्थापित कर दें, कुबेर यंत्र के चारों ओर चार ‘लघु नारियल’ स्थापित कर चावल, कुंकुम, नैवेद्य आदि से पूजन करें, और उसके सामने ही सिक्के रूपये इत्यादि रखें, और तत्पश्चात् कुबेर मंत्र की तीन माला का जप स्फटिक की 108 दाने की माला से करें।
कुबेर मंत्र- ऊँ श्रीं ऊँ हृीं श्रीं हृीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः।
कुबेर मंत्र की तीन मालाओं का जप करने के पश्चात् इस अवसर पर साधक को अपनी इच्छा तथा श्रद्धा के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवलोक में वास करने वाले देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर हैं। कुबेर न केवल देवताओं के कोषााध्यक्ष हैं, बल्कि समस्त यक्षों, गुह्यकों और किन्नरों, इन तीन देवयोनियों के भी अधिपति भी कहे गये हैं। ये नवनिधियों में पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और वर्चस् के स्वामी भी हैं। जब एक निधि भी अनन्त वैभवों को देने वाली मानी गयी है, और धनाध्यक्ष कुबेर तो गुप्त या प्रकट संसार के समस्त वैभवों के अधिष्ठाता देव हैं। यह देव उत्तर दिषा के अधिपति हैं, इसी लिये प्रायः सभी यज्ञ, पूजा उत्सवों तथा दस दिक्पालों के पूजन में उत्तर दिशा के अधिपति के रूप में कुबेर का पूजन होता है। धन त्रयोदशी तथा दीपावली के दिन कुबेर की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। देवताओं के धनाध्यक्ष महाराज कुबेर राजाओं के भी अधिपति हैं, क्योकि सभी निधियों, धनों के स्वामी यही देव हैं, अतः सभी प्रकार की निधियों या सुख, वैभव तथा वर्चस्व की कामना की पूर्ति, फल की वृष्टि करने में वैश्रवण कुबेर समर्थ हैं।
सारांश में कहा जा सकता है कि धनाध्यक्ष कुबेर की साधना ध्यान करने से मनुष्य का दुःख-दारिद्रय दूर होता है और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिव के अभिन्न मित्र होने से कुबेर अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करते हैं और उनकी कृपा से साधक में आध्यात्मिक ज्ञान-वैराग्य आदि के साथ-साथ उदारता, सौम्यता, शांति तथा तृप्ति आदि सात्त्विक गुण भी स्वाभाविक रूप से विकसित हो जाते हैं।
महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियायें श्रीविद्यार्णव, मंत्रमहार्णव, मंत्रमहोदधि, श्रीतत्त्वनिधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादि पुराणों में विस्तार से निर्दिष्ट हैं। तदनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदक्षरात्मक छोटे-बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। मंत्रों के अलग-अलग ध्यान भी निर्दिष्ट हैं। मंत्र साधना में गहन रूची रखने वाले साधक उपरोक्त ग्रन्थों का अवलोकन करें। यहाँ पाठकों के लिये एक सहज व सरल साधना पद्धति दी जा रही है। यह साधना धनत्रयोदशी के दिन की जानी चाहिये यदि कोई साधक इस साधना को दीपावली की रात्रि में करना चाहे तो उस महापर्व पर भी यह साधना कर सकते हैं। अथवा दोनो ही दिन (धनत्रयोदशी तथा दीपावली) यह साधना सम्पन्न की जा सकती है। इस वर्ष धनत्रयोदशी 2 नवम्बर 2021 के दिन है। यह साधना भी स्थिर लग्न में ही सम्पन्न की जाती है। ‘स्थिर लग्न’ इन दिनों में वृष तथा सिंह ही पढ रही हैं। वृषभ लग्न 2 नवम्बर 2021 धनत्रयोदशी के दिन सांयकाल 18 बजकर 16 मिनट से रात्रि 20 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। तथा सिंह लग्न मध्य रात्रि में ठीक 24/00 बजकर 46 मिनट से 03 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। इस साधना के लिये यह स्थिर लग्न का मुहूर्त सर्वोत्तम महूर्त माना गया है। इस दिन स्थिर लग्न में शुद्ध रजत (चांदी) पर निर्मित कुबेर यंत्र तथा जप के लिये रूद्राक्ष की 108 दाने की माला का प्रयोग किया जाना चाहिये। इसमें भी कुबेर यंत्र विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठित होना आवश्यक है, तथा माला नई व शुद्ध होनी चाहिये।
धनत्रयोदशी की रात्रि में उत्तर दिशा की ओर मुख करके पुरूष साधक पीले वस्त्र तथा महिलायें पीली साड़ी पहनकर बैठें सामने एक लकड़ी के पटरे पर पीला रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर प्राण प्रतिष्ठित श्री कुबेर यंत्र स्थापित करें और साथ ही शुद्ध घी का दीपक जलाकर पंचोपचार पूजा करें मिठाई का भोग लगावें तथा विनियोगादि क्रिया करके 11 माला रूद्राक्ष की माला से कुबेर मंत्र का जप करें। जप सम्पूर्ण होने पर प्रसाद रूप में मिठाई का परिजनों को वितरण करें और फिर रात्रि में उसी पूजा स्थल में ही निद्रा विश्राम करें। प्रातः शेष फूलादि सामग्री जल में विसर्जित कर दें तथा श्री कुबेर यंत्र को पीले आसन सहित अपनी तिजोरी कैश बॉक्स या अलमारी अथवा संदूक में रख दें। तथा रूद्राक्ष की जप माला को गले में धारण करें।
विनियोग:-
सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर निम्नलिखित विनियोग करें-
अस्य श्रीकुबेरमंत्रस्य विश्रवा ऋषिः बृहती छन्दः धनेश्वरः कुबेरो देवता ममाभीष्टसिद्धयथे जपे विनियोगः।
करन्यासः-
विनियोग के उपरांत करन्यास करें-
यक्षाय अंगुष्ठाभ्यां नमः।
कुबेराय तर्जनीभ्यां नमः।
वैश्रवणाय मध्यमाभ्यां नमः।
धनधान्याधिपतये अनामिकाभ्यां नमः।
धनधान्य समृद्धिं में कनिष्ठकाभ्यां नमः।
देहि दापय स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
षडंगन्यासः-
करन्यास के उपरांत षडंगन्यास करें-
यक्षाय हृदयाय नमः।
कुबेराय शिरसे स्वाहा।
वैश्रवणाय शिखायै वषट्।
धनधान्याधिपतये कवचाय हुम्।
धनधान्य समृद्धि में नेत्रत्रयाय वौषट्।
देहि दापय स्वाहा अस्त्राय फट्।
इनके मुख्य ध्यान श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पकविमान पर विराजित दिखाया गया है। इनका वर्ण गारुडमणि या गरुडरत्न के समान दीप्तिमान् पीतवर्णयुक्त बतलाया गया है और समस्त निधियां इनके साथ मूर्तिमान् होकर इनके पार्श्वभाग में निर्दिष्ट हैं। ये किरीट मुकुटादि आभूषणों से विभूषित हैं। इनके एक हाथ में श्रेष्ठ गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा सुशोभित है। ये उन्नत उदरयुक्त स्थूल शरीर वाले हैं। ऐसे भगवान् शिव के परम सुहृद् भगवान् कुबेर का ध्यान करना चाहिए-
मनुजवाह्यविमानवरस्थितं गरुडरत्ननिभं निधिनायकम्। शिवसखं कमुकुरादिविभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम्।।
यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय स्वाहा।
वैसे तो इस मंत्र की जप संख्या एक लक्ष (एक लाख) कही गयी है। परंतु धन त्रयोदशी की रात्रि में जितना हो सके विधिविधान से इस मंत्र का जप करना ही प्रयाप्त होता है। मंत्र का जप सम्पन्न होने पर तिल एवं शुद्ध घी से दशांश हवन करना चाहिये।
साधना सामग्री जिसमें एक प्राणप्रतिष्ठित श्री कुबेर यंत्र तथा प्राणप्रतिष्ठित रूद्राक्ष की माला होगी, इसकी राशि- 5100/-रू मात्र है इस को प्राप्त करने के लिये हमारे कार्याल्य में सम्पर्क करें।
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