स्त्री जातक और फलदीपिका

स्त्री जातक और फलदीपिका

Dr.R.B.Dhawan (Guruji)

फलदीपिका के 11 वीं अध्याय में श्लोक संख्या 1 में फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वर महाराज कहते हैं- स्त्री की कुंडली में अष्टम स्थान से मांगल्य अर्थात सधवापन, नवम स्थान से संतान और लग्न से शरीर सौंदर्य का विचार करना चाहिए।
पति तथा पति सम्बंधित सुख-समृद्धी का विचार सातवें घर से करना, और संग अर्थात अन्य लोगों से समागम तथा सतीत्व का विचार चौथे स्थान से करें।

यदि शुभ ग्रह इन घरों में होंगे तो अशुभता होने नहीं देंगे, अशुभ ग्रह बैठे होंगे तो शुभ फल करेंगे नहीं, किंतु अशुभ ग्रह भी यदि वहां अपनी राशि के होंगे तो अच्छा ही फल करेंगे। अनिष्ट फल नहीं करेंगे।

मंत्रेश्वर महाराज 11 वें अध्याय के श्लोक नंबर 2 में कहते हैं, यदि स्त्री की कुंडली में लग्न और चंद्रमा दोनों सम राशि में हो, और सौम्य ग्रहों से दृष्ट हो तो, वह अच्छे संतान वाली अच्छे पति वाली और सुशीला आभूषण संपत्ति से युक्त होती है।

किंतु यदि लग्न और चंद्रमा दोनों विषम राशि में हों, और अशुभ ग्रहों से युक्त हो या दृष्ट हो तो, कुटिल बुद्धि वाली, पति से क्रोध पूर्ण व्यवहार करने वाली, मर्दाना प्रकृति की पति के नियंत्रण में ना रहने वाली और दरिद्र होती है।

इस योग में ग्रहों का प्रभाव अच्छा या बुरा शुभ या अशुभ प्रभाव, नवांश में उस ग्रह की स्थिति पर भी यह प्रभाव स्थिति को परिवर्तित करता है। अर्थात अगर नवांश में शुभ स्थिति है शुभ युक्त है वह राशि तो अशुभ फल नहीं होते। बल्कि उस स्त्री को सौंदर्य यश विद्या तथा धन संयुक्त पति प्राप्त होता है।

स्त्री की कुंडली में यदि सप्तम स्थान में मंगल की स्थिति हो तो पति के जीवन के लिए शुभ नहीं बताई गई। यदि शुभ और बाप दोनों प्रकार के ग्रह सप्तम स्थान में हो, तो भी शुभ नहीं बताई गई। शुभ इसलिए नहीं बताई गई क्योंकि पति की लाइफ को खतरा होता है।

स्त्री की कुंडली में यदि अष्टम भाव में क्रूर ग्रह हो तो पति की आयु में कमी करने वाली होती है, अर्थात पति की आयु पर प्रभाव पड़ता है लेकिन पति की कुंडली में अगर उसकी आयु योग प्रबल हो तो, फिर यह योग स्त्री की कुंडली में नगणय हो जाता है।

हमारा अनुभव है कि यदि पति-पत्नी दोनों की कुंडली में मंगल शनि राहु केतु सूर्य का दोष बराबर हो तो, दोनों कुंडलियां एक दूसरे के दोष को न केवल काट देती हैं, अपितु नष्ट कर देती हैं।

श्लोक नंबर 4 है – स्त्री की कुंडली में पंचम भाव में यह वृषभ, सिंह कन्या, या फिर वृश्चिक राशि हो, और उसमें चंद्रमा हो तो, उस स्त्री के संतान कम होती हैं।

सप्तम भाव मध्य मंगल या शनि की राशि या मंगल या शनि के नवांश में हो तो, उसकी गुप्तांग में रोग होता है।

यदि चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो तो, उसकी रूचि अन्य पुरुषों में होती है, यदि लग्न चंद्र और शुक्र मंगल या शनि के राशि और अंश में हो तो, व्यभीचारणी होती है।

अध्याय 11 श्लोक नंबर 5- स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव मध्य शुभ ग्रह की राशि पर नवांश हो तो, कमर के नीचे जांघों वाला भाग सुंदर कहलाता है। पति सुख से संपन्न होती है, यदि लग्न में चतुर्थ में चंद्रमा का शुभ ग्रहों से संबंध हो तो, चरित्रवान होती है। अनेक गुणों से युक्त होती है, यदि त्रिकोण में पांचवें तथा नवम घर में सौम्य ग्रह हो तो, सुखी होती है। पुत्रवती होती है, गुणवती होती है, संपत्ति शालिनी होती है, यदि उपर्युक्त घरों में निर्बल क्रूर ग्रह हो तो, बांझ होती है, उसकी संतति अल्पायु होती है।

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