संगीत और ज्योतिष
भारत अनादि काल से विभिन्न विद्याओं का उत्त्पत्ति स्थान रहा है। संगीत तथा ज्यौतिष का अन्योन्यश्रित सम्बन्ध है। ग्रहों के विशिष्ट स्थानों पर स्थित होने से जातक में गायन के गुणों का समावेश कहाँ तक होता है। इसका विवेचन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं होता। फिर भी यत्र-तत्र वर्णित सामग्री के संकलन का प्रयास इस विषय को स्पष्ट करने में अंशतः सहायक होगा। ज्योतिष ग्रन्थों में विशेष ग्रहों का प्रभाव केवल यह इंगित करता है कि अमुक जातक ललित कलाओ का प्रेमी होगा। वह कवि भी हो सकता है तथा संगीतज्ञ भी। किसी निश्चय पर पहुंचने के लिए होरा चक्र की अन्य सामग्री का भी सहारा लेना होगा। कभी कभी एक ही मनुष्य में संगीत तथा साहित्य का सुन्दर सामन्वय दृष्टि गोचर होता है, अन्य व्यक्तियों में ललित कला का अन्यरूप विकसित हो जाता है। कई उच्चकोटि के अभिनेता हो जाते हैं, तथा कई अद्धितीय चित्रकार। नाटयकला से भी संगीत का घनिष्ट सम्बन्ध है, इसलिए निश्चयात्मक रूप से यह कहा जा सकता कि अमुक जातक गायक ही होगा, बड़ा ही जटिल प्रश्न है, फिर भी इस दिशा में प्रयास किया गया है।
ग्रहों की स्थिति के साथ उनका अन्य ग्रहों से संम्बन्ध भी विचारणीय विषय है। हो सकता है कि होरा चक्र में गायक के पूर्ण लक्षण स्पष्ट हों, पर साथ ही व्यावसायिक स्थान में स्थित ग्रहों से उनका सम्बन्ध स्थापित न हो सकता हो। ऐसी दशा में इसका आंशिक लाभ ही प्राप्त हो सकेगा। जैसे देखा गया है कि, एक डाक्टर अच्छा गायक हो सकता है, अथवा एक इंजीनियर एक सफल अभिनेता हो सकता है। वैसे ही एक विद्धान की आर्थिक स्थिति शोचनीय हो सकती है, और एक अपढ़ धनाढ्य हो सकता है। इससे यह स्पष्ट है कि ग्रहों के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गायक घोषित करने के पूर्व सभी आवश्यक पहलुओं का सूक्ष्म रूप से विश्लेषण करना आवश्यक है।
ज्योतिष शास्त्र के आधार पर होराचक्र का तृतीय स्थान गान विद्या का सूचक है, तथा शुक्र ललित कलाओं का भाग्य विधाता ग्रह है। शुक्र केवल कवि गायक तथा नृत्यकार का विधाता है, परंतु शनि के कुछ राशियों तथा अंशों मंे स्थित सहयोग सोने मंे सुगंध ला देता है। शुक्र तथा सूर्य के योग से अभिनेताओं का निर्माण होता है। धनु का योग संगीत शास्त्र की प्रोढ़ता तथा शास्त्र के अध्ययन में सहायक होती है।
शुक्र के पश्चात चन्द्र का स्थान भी महत्वपूर्ण है, वह स्वतः कलाकार होने के कारण कलाओं का निर्माण करता है। शुक्र तथा चन्द्र के अतिरिक्त उनकी राशियां भी (उदाहरणार्थ तुला तथा कर्क) अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। राशियों में मिथनु का भी स्वतंत्र स्थान है। जिसका स्वरूप स्पष्टतः गायन का सहयोग प्रदर्शित करता है। नरनारी की युगल मूर्ति में (मिथुन राशि) नारी की वीणा संगीत का उत्कृष्ट वाद्य है।
उपर्युक्त आधार को लक्ष्य मानकर निम्नांकित निष्कर्ष निकाला जा सकता है- वृषभ, मीन, मेष तथा सिंह राशि में जन्म होने से प्रत्येक का तीसरा स्थान संगीत का परिचायक है। वृषभ अपना विशेष महत्व इसलिए रखता है क्योकि कि, जन्म शुक्र की राशि में हुआ तथा तीसरे स्थान में चन्द्र स्थित रहता है, मीन तथा सिंह का तृतीय स्थान शुक्र है, तथा मेष का तृतीय स्थान मिथुन राशि है, गुरू सब ज्ञानों का दाता है। उसकी राशियां धनु तथा मीन तीसरे स्थान में होने से वह भी अपना महत्वपूर्ण सहयोग करती हैं। मीन शुक्र की उच्च राशि है। तुला तथा मीन को भी शुक्र के साथ प्रथम तथा तीसरे स्थान (शुभ क्षेत्र) का लाभ मिल जाता है। शुक्र तथा चन्द्र अपनी ही राशि में स्थित है, या आपस में अपनी राशियों से परस्पर आदान-प्रदान कर रहे हैं, जब वे राशियां लग्न स्थान में हों, या तृतीय स्थान में हों, तब संगीत का उŸाम योग बनता है।
जब लग्न तथा तृतीय स्थान के स्वामी शुक्र तथा चन्द्र न हों, तब जो अन्य ग्रह इन स्थानों का स्वामित्व कर रहे हैं, उनकी परिस्थिति शुक्र तथा चन्द्र से सम्बन्धित तृतीय स्थान का स्वामी लग्न स्थान स्वामी तृतीय स्थान में होना चाहिए। इन योगों का स्थान पांचवां स्थान ही हो सकता है, क्योंकि वह पूर्व पुन्य-स्थान कहलाता है।
यदि तीसरे गृह के स्वामी का सम्बन्ध दशवें गृह के स्वामी से स्थापित होता है, और दोनों का सम्बन्ध लग्न या लग्न के स्वामी से स्थापित होता है तब, जातक पेशेवर संगीतज्ञ होता है। धन योग तथा राजयोग का सम्बन्ध स्थापित करके यह देखने का प्रयास भी करना चाहिए कि, क्या ऐसा व्यक्ति उच्च स्थान प्राप्त कर सकेगा ? यह स्पष्ट है कि, संगीत के सम्बन्ध का भविष्य बतलाने के पहले तृतीय स्थान तथा नवमांश का सदैव ध्यान रखना चाहिए।
तीसरे नवमांश का जन्म संगीत की प्रवृŸिा का सहायक होता है। शुक्र तथा चन्द्र अपने स्वक्षेत्र नवमांश से उतने ही सहायक होते हैं, जितने राशि चक्र के स्वक्षेत्र से किसी भी संगीत कवि साहित्य तथा अन्य ललित कलाओं के ज्ञाता के होरा चक्र, तथा चन्द्र का स्मबन्ध अवश्य स्थापित होता है। चाहे केन्द्र स्थान से हो, अथवा स्वक्षेत्र से उच्च तथा मित्र राशियों से हो।
शुक्र के द्वितीय भाव में रहने से जातक कवि होता है। तीसरे गृह का स्वामी चतुर्थ गृह के सहयोग से उस व्यक्ति में विद्या के सैद्धांतिक तथा प्रत्यक्ष दोनों पक्षों के ज्ञान का समावेश होता है। ज्योतिष के अतिरिक्त हस्तरेखा विज्ञान के आधार पर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि, जिन जातकों की उंगलियां बिलकुल चिकनी हों, तथा उंगलियों की दोेनों गांठों मे से एक भी दिखाई न दे, इसके साथ ही उंगलियों के अग्रभाग अत्यन्त नुकीले हों, वह साहित्य तथा कला का प्रेमी और धार्मिक विचार वाला होता है। पर यदि दूसरी ग्रन्थि उन्नत हो तो, इन कलाओं से धन कमाने की ओर झुकाव हो जाएगा। पर ऐसे हाथों में यदि पहली गांठ बड़ी हो तो, संगीत साहित्य की व अन्य कलाओं में निपुणता के साथ जातक में साँसारिक सफलता की भावना दृढ होती है, तथा वह एक सफल गायक कलाकार एंव रंग मंच पर अभिनय करने वाले होते हैं। यदि भाग्यवश दोनों गांठें उन्नत हों तो, साहित्य संगीत तथा कला से वह जातक अच्छा धन उत्पन्न करता है।
उपर्युक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि, भारतीय ज्ञान संसार के अन्य देशों की अपेक्षा प्रत्येक विषयों में उन्नत था। उनके सूक्ष्म विवेचन द्वारा साहित्य का कोई अंग ऐसा न बच सका जिसे उन्होंने स्पर्श न किया हो। कलान्तर में अनेक कारणों से उनका ज्ञान लुप्त हो गया। अब समय आ गया कि भारतीय विद्वान अपने अथक परिश्रम द्वारा पुनः उस स्थिति को प्राप्त करने का भगीरथ प्रयत्न करेगे, और भारत को संसार को अनेक विद्याओं एक मात्र केन्द्र बिन्दु बनाने में सफल होंगे।