शनिग्रह जन्य दोष निवारक प्रयोग
शनि एक तमोगुणी पाप ग्रह है। प्राचीन आख्यानों के अनुसार सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया के गर्भ से शनि का जन्म हुआ है। इसी कारण से शनिदेव की सूर्यपुत्र कहा गया है। पिता पुत्र होते हुये भी दोनों में परस्पर शत्रुता है। सूर्य जहाँ मेष राशि में उच्च के होते हैं वहीं शनि मेष राशि में नीच के होते हैं शनि शीतल, निस्तेज, शुष्क, उदास और शिथिल ग्रह है। यह भचक्र का सबसे धीमा ग्रह है। यह एक राशि मंे 30 महीने के आस-पास रहता है। अत्यंत धीमी गति से चलने के कारण शनैः$चर=शनैश्चर कहा गया है।
शनि का प्रभाव अत्यंत विच्छेदात्मक होता है। इसकी दृष्टि को अत्यंत विषमयी कहा गया है। यह कुण्डली में जहाँ बैठता है उस भाव की वृद्धि करता है परन्तु यह जिस भाव या भावेश पर दृष्टि डालता है उसे दूषित कर देता है और उसमें भी विच्द्धोत्मक प्रभाव उत्पन्न कर देता है। यह विवाह में तो विलम्ब उत्पन्न करता ही है साथ ही जीवन साथी के निम्न स्तरीय होने की ओर संकेत भी करता है। राग, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, शत्रुता, हिंसा, निराशा, उदासीनता एवं नीरसता का द्योतक होने के कारण यह दाम्पत्य जीवन को कष्टमय बनाता है।
यदि शनि अनुकूल न हो तो उसकी दशा अंर्तदशा अथवा साढ़े-साती, ढैय्या या कंटक के समय अनेकों कष्ट, किसी भी रूप में मिल सकते हैं। इस महीने की तारीख को शनि अपनी वर्तमान स्थिति (सिंह राशि) से परिवर्तन कर कन्या राशि में जा रहे हैं। इससे कर्क राशि वाले शनि की साढ़े-साती से मुक्त हो जायेंगे और डला राशि पर साढ़े-साती प्रारम्भ हो जायेगी। इस तरह सिंह, कन्या और तुला राशि वाले साढ़े-साती से प्रभावित रहेंगे। इसके अलावा वृष राशि और मकर राशि वाले 9 सितम्बर के बाद से शनि की ढैय्या से आजाद हो जायेंगे जबकि मिथुन राशि एवं कुंभ राशि वालों पर ढैय्या का प्रभाव शुरू हो जायेगा। इन सब कारणों को ध्यान में रखते हुये तंत्र-दर्शन के पाठकों के लाभार्थ शनि के दोषों के निवारणार्थ यह प्रयोग दिया जा रहा है जो शनि जन्य तमाम कष्टों को दूर करने वाला है। यह शनि के प्रकोप से उत्पन्न कष्टों को कम करेगा व आपको शनि का कृपा पात्र बनायेगा।
साधना सामग्री:- शनि यंत्र, काले उड़द, काला कपड़ा, शनि माला आदि।
साधना मंत्र:- ‘‘ऊँ प्रां प्रीं प्रौं शः शनैश्चराय नमः’’।
साधना विधि:- अमावस्या के तत्काल बाद आने वाले शनिवार को यह प्रयोग रात्रि में किया जाता है। उस समय स्नान कर स्वच्छ नीले वस्त्र धारण करें। काले कम्बल के आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुखकर के बैठ जायें। सामने बजोट पर काला कपड़ा बिछा लें और साबुत काले उड़द लेकर बजोट पर एक ढेरी बना लें। उस पर थोड़ा सा सिंदूर छिड़कें। अब इसी ढेरी पर शनि यंत्र को खड़ा स्थापित कर दें। सरसों के तेल का दीपक जलायें एवं धूप जलायें। अब शनि माला लेकर उपरोक्त मंत्र का निष्ठापूर्वक 21 माला जप करें।
इस जाप को बीच में नहीं रोकना चाहिये। न तो स्थान से उठना चाहिये न ही किसी से बोलना चाहिये। इस बावत घर वालों को पहले ही समझा देना चाहिये। जाप पूर्ण होने के पश्चात सम्पूर्ण सामग्री को काले कपड़े में लपेट लें और जहाँ कहीं भी तिराहा हो वहाँ रखकर बिना पीछे मुड़कर देखें चुपचाप वापस घर आ जायें। घर आकर स्नान करें। अपनी श्रद्धा व सामर्थ्य को अनुसार दान पुण्य करें। इस प्रकार किये गये प्रयोग से आप शनि के प्रकोप से मुक्त हो जायेंगे।