बगलामुखी

बगलामुखी

शत्रुपीड़ा से मुक्ति के लिये
बगलामुखी प्रयोग ही काफी है

जिस प्रकार यदि कोई अमृत में भी विष की बूंदे डाल दें, तो पूरा का पूरा अमृत ही विष के समान हो जाता है, मनुष्य जीवन भर बहुत परिश्रम व प्रयत्न कर जीवन में सुख रूपी अमृत का कलश भरता है, आनन्द के प्रवाह को महसूस करने का प्रयत्न करता है, परंतु ऐसे में यदि किसी ने विष की बूंदें डाल ही दीं?
देवी बगलामुखी का स्थान महाशक्ति की दस महाविद्याओं में प्रमुख है, यदि कोई भयंकर शत्रुबाधा है, और उस शत्रुबाधा से मुक्ति नहीं मिल रही, अथवा भूमि या भवन पर कोई नाजायज कब्जा किये हुये है और आप उस भूमि या भवन को मुक्त करवाना चाहते हैं, या आप का प्रतिद्वंदी आप पर कोई तंत्र-प्रहार कर रहा है और आप पिछड़ रहे हैं, यदि आप चुनाव में विजय चाहते हैं, तथा चाहते हैं की आपका शत्रु आप पर हावी न हो जाये। इस के अतिरिक्त गृहकलह, कर्ज की भयंकर पीड़ा से मुक्ति हेतु बगलामुखी देवी की साधना से तीव्र तथा शीघ्र प्रभावी कोई तंत्रसाधना नहीं है।,
आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति जीवन को अपनी इच्छानुसार, आनन्द से जीना चाहता है, और यह आनन्द, तुष्टि प्राप्त करनें के लिये निरन्तर इच्छा रखता है, और प्रयत्न भी करता रहता है, लेकिन क्या हर किसी के भाग्य में इच्छानुसार आनंद से जीवन व्यतीत करना होता है?इसका यही उत्तर मिलेगा, कि ऐसा संभव नहीं हो पाता, वास्तविक जीवन में तो कष्ट आते ही हैं, बार-बार बाधायें उपस्थित होती ही हैं, इनके कारणों को समझकर उनका उपाय या उपचार करने से यह बाधायें दूर होती हैं और आनन्द की रस धारा बह निकलती है। इस तथ्य को इस प्रकार भी समझसकते हैं- एक बर्तन में सुस्वादु, श्रेष्ठ दुग्ध भरा है, और आप इसका पान करना चाहते हैं, कोई इस दूध में खटाई की कुछ बूंदें डाल दें तो क्या होगा?सारे के सारे पात्र का दूध अपना गुण खो देगा, फट जायेगा, पीने के लायक नहीं रहेगा, तब आपके पास उस दूध को बाहर फेंकने के अलावा क्या चारा है?मानव जीवन के लिये सुख और आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन है। कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में शत्रु, गृहकलह, तिरस्कार तथा किसी न किसी प्रकार का भय उसका पीछा करते ही रहते हैं। यही चार ही सुखी जीवन के लिये विष हैं- 1. शत्रु, 2. गृहकलह, 3. तिरस्कार तथा 4. सुख नष्ट होने का भय।
आचार्य चाणक्य का कथन है, कि शत्रु तो चौबीस घंटे आप पर दृष्टि रखता है, मित्र से तो आप कभी-कभी मिलते हैं, परंतु यदि आपका कोई शत्रु है तो आपका चिन्तन निरंतर उसकी ओर रहेगा, ऐसे में आपका विचार प्रवाह बदल जायेगा, अपनी उन्नति के कार्य नहीं कर पायेंगे, हर समय आशंकित रहेंगे। आपको कोई पुरस्कृत न करे, तो कोई अन्तर नहीं पड़ता, लेकिन यदि कोई आपका तिरस्कार करे, कोई आपको तुच्छ समझे, तो यह अपमान आप के लिये सहन करना कठिन होगा। इसी प्रकार गृहकलह जीवन की सभी रसों का नाश कर देती है, गृहकलह शारीरिक क्षति तो पहुंचाती ही है, मानसिक दृष्टि से भी व्यक्ति दुर्बल करती है, वह कुछ रचनात्मक कार्य करना चाहता है, परंतु यदि प्रतिदिन गृहकलह का सामना करना पड़े तो जीवन का आनन्द तत्व ही समाप्त हो जाता है।
चौथी विपरीत परिस्थिति भय है, यह भय शत्रु से भी हो सकता है, अपने अधिकारी से भी हो सकता है, अपने व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धी से भी हो सकता है, भय के तो अनेक प्रकार हैं, इसमें से एक भी प्रकार का भय यदि व्यक्ति को लगा रहता है तो वे सामान्य जीवन यापन नहीं कर सकता है। यह चारों विपरीत परिस्थितियां ही विष हैं, और विष को अपने जीवन से दूर करने का, एक विशेष उपाय तंत्र ग्रन्थों में बगलामुखी देवी की साधना कहा गया है। बगलामुखी देवी का स्वरूप ही दस महाविद्याओं में सबसे निराला है, त्रिनेत्री देवी अपने हाथ में मुग्दर, वज्र, पाश और शत्रु की जीव्हा लिये हुये तीव्रतम उग्ररूप में तीनों लोकों को स्तम्भित कर देने वाली देवी हैं। इनके ऐसे रूप में सोलह शक्तियाँ समाहित हैं, ये 16 शक्तियाँ दश महाविद्या में इस प्रकार वर्णित हैं- 1. मंगला, 2. स्तम्भिनी, 3. जुम्भिणी, 4. मोहिनी, 5. वश्या, 6. चला, 7. बलाका, 8. भूधरा, 9. कल्मषा, 10. धात्री 11. कलना, 12. कालाकर्षिणी, 13. भ्रामिका, 14. मन्दगमा, 15. भोगस्था, एवं 16. भाविका।
बगलामुखी साधना-
यह साधना अति तीव्र प्रभाव प्रकट करने वाली कही गयी है, अतः किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही की जानी चाहिये, ऊपर लिखे जो चार दोष हैं, उनके निवारण हेतु विशेष संकल्प लेकर यह प्रयोग किया जा सकता है। कई सामान्य साधक जिसे पूजन विधि का पूर्ण ज्ञान नहीं होता अथवा किसी गुरू से दीक्षित नहीं होता, उससे साधना में गलतियाँ हो सकती हैं, अतः शास्त्रों में विधान है, कि यदि गुरू दीक्षा नहीं ग्रहण की तो पहले किसी योग्य गुरू से दीक्षा ग्रहण करें तदुपरांत बगलामुखी देवी की साधना सम्पन्न की जाये, ऐसे में किसी प्रकार का कोई विपरीत प्रभाव नहीं प्रकट होगा।

बगलामुखी साधना पद्धति –
बगलामुखी साधना किसी भी ऐसे मंगल अथवा रविवार को सम्पन्न की जा सकती है जब कृष्णपक्ष की चतुर्दशी हो, अथवा ग्रहणकाल या पर्वकाल (होली-दीपावली) के अवसर पर भी सम्पन्न की जा सकती है। इस साधना के लिये अनेक कठोर नियम हैं जैसे- ब्रह्मचर्य का पालन करना, दिन में केवल एक बार ही सात्विक भोजन ग्रहण करना, एकांतवास तथा पीले वस्त्र धारण करना इत्यादि। इस देवी की साधना में सवा लक्ष मंत्र जप का विधान है। परंतु यहां पर्वकाल (दीपावली) के पर्व पर सम्पन्न की जानेवाली लघु साधना की विस्तृत पद्धति का उल्लेख किया जा रहा है जिसे दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी के दिन से आरम्भ करना चाहिये तथा प्रतिपदा के दिन (तीन दिन) तक यह साधना की जाती है। इसमें भी तीन खण्ड में- प्रातःकाल, मध्याह्न काल, तथा सायंकाल की साधना का क्रम विशेष है, और इस तांत्रोक्त साधना को पर्वकाल में इसी रूप में सम्पन्न करने से ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। प्रथम दिन प्रातःकाल में 11 माला, मध्याह्न काल में भी 11 माला तथा रात्रिकाल में भी 11 माला का जप किया जाना चाहिये। परंतु दूसरे दिन दीपवली के दिन प्रातः 14 माला का जप, मध्याह्न काल में भी 14 माला तथा रात्रिकाल में भी 14 माला का जप किया जाना चाहिये। तीसरे (प्रतिपदा) के दिन फिर से प्रथम दिन की तरह प्रातःकाल में 11 माला, मध्याह्न काल में भी 11 माला तथा रात्रिकाल में भी 11 माला का जप किया जाना चाहिये। इस प्रकार यह लघु प्रयोग 108 माला जप करके तथा 11 माला की संख्या अर्थात् 1188 मंत्र के द्वारा हवन तथा 120 तर्पण व 12 मार्जन तथा एक या दो ब्राह्मण को श्रद्धापूर्वक भोजन करवाने से सम्पन्न होता है।

पूजा सामग्री-
देवी बगलामुखी की पर्वकाल में की जाने वाली लघु साधना के लिये पूजा हेतु पीली धोती-कुर्ता और यदि महिला साधक हो तो पीली साड़ी का प्रयोग किया जाता है, इसी प्रकार अपने बैठने के लिये पीला आसन तथा एक लकड़ी की चौकी व उस पर बिछाने के लिये पीले रेशमी कपड़े का आसन, पीतल का दीपक दीपक के लिये तिल का तेल, धूप, पीले पुष्प, हल्दी पाऊडर, तथा पीला जनेऊ व पीला कलावा, पीतल का एक जल पात्र (लोटा), पूजा के लिये पीतल की एक थाली, गुड़, चावल, 5 पान के पत्ते, 21 साबुत सुपारी, कुंकुम, रक्त चंदन व सिंदूर। इस के अतिरिक्त विशेष अभिमंत्रित साधना सामग्री में- 1. हल्दी की 108 मनके की माला, 2. स्वर्ण अथवा स्वर्ण पालिश वाला बगलामुखी यंत्र जो की प्राण प्रतिष्ठित होना आवश्यक है, 3. बगलामुखी देवी का रंगीन चित्र तथा 4. इस के अतिरिक्त यदि साधक पहली बार यह साधना सम्पन्न कर रहा है तो बगलामुखी कवच भी आवश्य धारण करना चाहिये जो कि योग्य गुरू द्वारा सिद्ध किया गया हो (यह कवच धारण करके साधना सम्पन्न करने से विपरीत प्रभाव प्रकट होने का भय नहीं रहता।), इस प्रकार यह 4 विशेष उपयोगी साधना उपकरण हैं जो की गुरू जी द्वारा विशेष काल में सिद्ध किये गये हैं। इन 4 साधना वस्तुओं का पैकिट पत्रिका कार्यालय से मंगवाकर कम से कम 15-20 दिन पहले ही रख लें जिस से की समय पर यह साधना उपकरण उपलब्ध हों।

साधना विधान-
प्रथम दिन प्रातः साधना आरम्भ करने से पूर्व हाथ में जल लेकर संकल्प लें यह उच्चारण करें- मैं (अपना नाम) सपुत्र/सपुत्रि/पत्नी श्री (अपने पिता/पति के नाम का उच्चारण करें), अमुक गोत्रोत्पन्ने अमुक वर्षान्तरगते, अमुक मासे, अमुक पक्षे, अमुक तिथौ, अमुक वासरे, शत्रुपीड़ा निवार्णाथ श्री बगलामुखी मंत्र लघु अनुष्ठान मे करिष्ये। जल भूमि पर छोड दें। इसके उपरांत विनियोग पाठ करें-

ऊँ अस्य श्रीबगलामुखी महामन्त्रस्य नारद ऋषिः वृहतीश्छन्दः श्रीबगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः मम सकलकामनासिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
इसके उपरांत अंगन्यास करें (बायें हाथ में थोड़ा जल लेकर दाहिने हाथ की पांच अंगुलियों को जल में भिगोकर सम्बंधित अंगों पर स्पर्श करते हुये मंत्र का उच्चारण करें) अंगन्यास मंत्र इस प्रकार हैं- ऊँ मंगलायै नमः अंगुलियों को मुख को स्पर्श करें, ऊँ बलकायै नमः नासिका के दाहिने भाग को स्पर्श करें, ऊँ कालाकर्षिण्यै नमः नासिका के बायें भाग को स्पर्श करें, ऊ ँस्तम्भिन्यै नमः दाहिने कान को स्पर्श करें, ऊँ भूधरायै नमः बायें कान को स्पर्श करें, ऊँ भ्रामिकायै नमः दोनो कन्धों को स्पर्श करें, ऊँ जृम्भिण्यै नमः दाहिने हाथ के अंगुठ को स्पर्श करें, ऊँ कल्मषायै नमः दाहिने हाथ की तर्जनी को स्पर्श करें, ऊँ मन्दगमनायै नमः दाहिने हाथ की मध्यमा को स्पर्श करें, ऊँ मोहिन्यै नमः दाहिने हाथ की अनामिका को स्पर्श करें, ऊँ धाव्यै नमः दाहिने हाथ की कनिष्का को स्पर्श करें, ऊँ भोगस्थायै नमः बायें हाथ के अंगुठ को स्पर्श करें, ऊँ वश्यायै नमः बायें हाथ की तर्जनी को स्पर्श करें, ऊँ कलनायै नमः बायें हाथ की मध्यमा को स्पर्श करें, ऊँ भाविकायै नमः बायें हाथ की अनामिका को स्पर्श करें, ऊँ वलायै नमः दाहिने हाथ की कनिष्का को स्पर्श करें। अब देवी का धयान करते हुये ध्यान मंत्र का पाठ करें-

ध्यान मंत्र-
दुष्टस्तम्भनमुग्रविध्नशमनं दारिद्रîविच्छेदनं भूमद्धीशमनं चलन्मृगद्दशां चेतः समाकर्षणम्।
सौभाग्यैकनिकेतन मम दृशोः कारूण्यपूर्णेक्षणो शत्रोर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः।।
भावार्थ- करूणापूर्ण नेत्रों वाली देवी माता बगलामुखी मेरे समक्ष आपका वह स्वरूप प्रगट हो जो शत्रुओं की शत्रुता को नष्ट करने वाला है, जो दुष्टों का स्तम्भन, भयंकर विध्नों का नाश, दरिद्रता का विनाश, भय का शमन करने वाला है, आप मेरे नेत्रों के लिये सौभाग्य का एक मात्र निकेतन है, आपके चरणों में सादर प्रणाम है। ध्यान के बाद देवी के चित्र की पूजा करें-

पूजा विधान-
देवी के चित्र का पूजन, पीले पुष्प, कुंकुम, रक्त चन्दन, हल्दी, सिंदूर, पान, सुपारी, पीला जनेऊ, पीला कलावा, चढाकर सम्पन्न करें, देवी के समक्ष नैवेद्य (मिष्ठान) भी अर्पित करें।
अब देवी बगलामुखी के प्राण प्रतिष्ठित यंत्र में सोलह शक्तियों का पूजन प्रारम्भ करें, इस हेतु निम्न एक-एक मंत्र पढ़ते हुये सोलह बगलामुखी यंत्र के बाहर वृताकार (गोल घेरे में) शक्तियों की स्थापना सोलह जगह चावल चढाकर करें- ऊँ मंगलायै नमः, ऊँ बलकायै नमः, ऊँ कालाकर्षिण्यै नमः, ऊँ स्तम्भिन्यै नमः, ऊँ भूधरायै नमः, ऊँ भ्रामिकायै नमः, ऊँ जृम्भिण्यै नमः, ऊँ कल्मषायै नमः, ऊँ मन्दगमनायै नमः, ऊँ मोहिन्यै नमः, ऊँ धाव्यै नमः, ऊँ भोगस्थायै नमः, ऊँ वश्यायै नमः, ऊँ कलनायै नमः, ऊँ भाविकायै नमः, ऊँ बलायै नमः, प्रत्येक चावल की ढेरी पर साबुत सुपारी रखें और पीले पुष्प तथा सिन्दूर अर्पित करें। यह सम्पूर्ण विधान केवल प्रथम दिन प्रातः ही करना आवश्यक है शेष पूजाकाल में पुष्प चावल चढाकर जप प्रारम्भ किया जा सकता है। प्रतिदिन धूप-दीप जलाकर ही पूजा आरम्भ करें।

जप विधान-
जैसा कि पूर्व में लिखा है, बगलामुखी देवी का पूजन तीन क्रम में प्रातः मध्याह्न एवं सायंकाल तीन दिन तक करना है। माला की जप संख्या का वर्णन जिस प्रकार पहले किया गया है उसी अनुसार करें, तीसरे दिन उपरोक्त मंत्र संख्या में हवन करें तथा उपरोक्त अनुसार ही तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन करवायें। जप हल्दी से बनी 108 मनके वाली प्राण-प्रतिष्ठित माला से पीले वस्त्र धारण करके, पीले आसन पर बैठकर ही करें। प्रतिदिन जप के उपरांत देवी को मानसिक प्रार्थना करते हुये जप पाठ को देवी के चरणों में समर्पित कर दें।

जप समर्पण मंत्र-
गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादात् सुरेश्वर।।
अर्थात् ‘देवी! सुरेश्वरी!! आप गोपनीय से भी अति गोपनीय वस्तु की गोप्ता (संरक्षक) हैं, हमारे द्वारा किये गये इस जप को ग्रहण करें, देवी! आपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो। हाथ जोड़ देवी का विसर्जन करते हुये मिष्ठान का भोग लगाकर सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें।
साधना वस्तुओं का पैकिट पत्रिका कार्यालय में उपलब्ध है। जिसमें 1. हल्दी की 108 मनके की माला, 2. प्राण-प्रतिष्ठित स्वर्ण पालिश वाला बगलामुखी यंत्र, 3. बगलामुखी देवी का रंगीन चित्र तथा 4. चांदी में बगलामुखी कवच होगा। इस साधना सामग्री के पैकिट की न्यौक्षावर राशि- 3600/-रू है।

About Post Author