दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने वाली
दीपावली साधना
साधनायें किसी एक विशेष वर्ग या समुदाय से संबंधित नहीं होती, साधना का क्षेत्र सम्पूर्ण मानव जाति तथा सम्पूर्ण विश्व है, कोई भी साधक किसी जाति, धर्म या स्थान विशेष से संबंध रखता हो वह किसी भी प्रकार की साधना सम्पन्न कर सकता है, मनुष्य यदि चाहे और प्रयास करे तो वह संपूर्ण विश्व और आगे बढ़कर पूरे ब्रह्माण्ड को अपने द्वारा संचालित कर सकता है। इसलिये जो सही अर्थो में साधक है, जो वास्तव में साधना की ऊँचाईयों पर पहंुचना चाहते हैं, वे छोटी-छोटी घटनाओं से हताश या निराश नही होते, बाधायें और अड़चने उनके जीवन के मार्ग को कभी बदल नहीं सकती।
संसार में जितने भी योगी, सन्यासी, या उच्च कोटि के साधक हुये हैं, उनमें से किसी को पहली बार ही साधना में सफलता मिली हो, यह आवश्यक नहीं। परंतु उनके जीवन का लक्ष्य एक ही था, कि हमें हर हाल में इस क्षेत्र में आगे बढ़ना है, और पूर्णता प्राप्त करनी है, क्योकि यह साधना का रास्ता अपने आप में अलौकिक और दिव्य होता है, इस रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति अपने देश और फिर पूरे विश्व में सम्मानित होता है, लोग उसका आदर और सम्मान करते हैं। आनेवाले दिनों में साधनाओं में सिद्धियों का एक अनुपम अवसर है ‘दीपावली पंचमहापर्व’ आ रहा है। इस पंचमहापर्व के अवसर पर किसी भी प्रकार की दुर्लभ या अतिदुर्लभ साधनायें सम्पन्न कीजा सकती हैं, मंत्र-तंत्र अथवा यंत्र की साधना करने वाले साधकों के लिये यह एक विशेष अवसर है, पर्वकाल के इस अवसर पर साधना का मनोवांछित फल प्राप्त होता है। पंचपर्व काल का तात्पर्य है उस साधना में पूर्ण सफलता की गारंटी! जो साधक तो है परंतु ऐसे अवसर पर पीछे रह जाता है, जो ऐसे अवसर का लाभ नहीं ले पाता, उससे बड़ा दुर्भाग्यशाली और कौन हो सकता है?यह तो एक स्वर्णिम अवसर है! यदि जीवन में ऐसा अवसर प्राप्त हो तो साधक को ऐसे क्षण लपक कर पकड़ लेने चाहियें! उसका उपयोग करना चाहिये और ऐसे क्षणों में साधना संपन्न कर मनोवांछित सिद्धि प्राप्त कर लेनी चाहिये।
पंचपर्व दीपावली क्यों महत्वपूर्ण-
कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन दीपोत्सव को ही दीपवली कहा जाता है। परंतु दीपावली से पूर्व कृष्ण पक्ष त्रयोदशीोई आवश्यक नहीं है परंतु दीपवाली के पंचपर्व के अवसर पर सफलता मिलेगी ही क्योंकि कहा जाता है कि इस पंच पर्व की यह विशेषता है कि इन दिनों में सूर्य अपनी नीच राशि ‘तुला राशि’ में विचरण करता है तथा इस के साथ चन्द्रमा भी इसी राशि में इस ग्रहराज का साथ देता है। अतः वातावरण में एक ऐसा प्रभाव होता है कि जब साधना करने पर हजार गुना फल प्राप्त होता है। अर्थात् यदि किसी मंत्र का जप एक लाख किया जाना है तब इस पर्व के अवसर पर केवल एक हजार जप से ही सिद्धि प्राप्त होती है। यही कारण है कि चाहे ईश्वरोपासना अपने कल्याण या आत्मोन्नति के लिये की जा रही है अथवा किसी विशेष प्रयोजन के लिये की जा रही है। परंतु सफलता अवश्य प्राप्त होती ही है। शर्त यही है कि साधना के विधि-विधान का पूरा ध्यान रखा गया हो। इस वर्ष 2011 में यह पर्व अक्तूबर माह में है, 24 अक्तूबर सांयकाल से धन त्रयोदशी का आरम्भ हो रहा है। 25 अक्तूबर के दिन यम चतुर्दशी तथा 26 अक्तूबर के दिन दीपोत्सव है, इस के बाद 27 अक्तूबर के दिन गोवर्धन तथा 28 अक्तूबर के दिन भईयादूज का दिन है। अर्थात् 24 अक्तूबर सांयकाल से 28 अक्तूबर सांयकाल तक पंचपर्व मुहूर्तराज है, इस समय का लाभ साधक भरपूर ले सकते हैं।
कोई भी साधना संपन्न करें-
आप इस पंचपर्व के अवसर पर किसी भी प्रकार की सात्विक तांत्रिक या मांत्रिक कोई भी साधना संपन्न कर सकते हैं, परंतु ध्यान रहे- वह साधना किसी के अहित के लिये न हो। आप का भविष्य पत्रिका के माध्यम से आपको कई दुर्लभ साधनायें सुलभ हैं और यदि अधिक साधनाओं को पढना चाहते हैं तो गुरूजी द्वारा लिखित गुरू जी की साधनायें पुस्तक मंगवा लीजिये। इस पुस्तक में गुरूजी ने अपने अनुभव से 74 प्रकार की सिद्ध साधनाओं का उल्लेख किया है। इसमें से आप किसी भी साधना का चयन अपनी रूची तथा सामर्थय के अनुसार कर सकते हैं। इन सभी साधनाओं को इस पंचपर्व के अवसर पर संपन्न कर सकते हैं, केवल इस बात का ध्यान रखें कि साधना के समय आपके पास उससे संबंधित सम्पूर्ण जानकारी तथा शुद्ध साधना सामग्री होनी चाहिये। इन साधनाओं में बताई गई पद्धति से और पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास के साथ यदि आप साधना संपन्न करते है तो सफलता आपसे दूर नही है।